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________________ वुहिपणयण-पयकमलं पणमउ हरसेण पुव्व सुरीणं । मुढइह इय सव्वं पसाउ जिणभत्ति कयसत्ति ।।४। पाइय-वंधे कव्वे पुत्व कयं सोइउण अमीयं सगं । तो मह परिसइच्छाउ पत्तिम कव्व-आरंभे ॥५।। धम्म अपकित्ति-हरणं धम्म उक्किट्ठ मंगलं भणियं । संसार-सार धम्म, धम्मं धुअ सिवपहे सत्थं ।।६।। चउविह धम्माभणिओ जिणदेवेहिं चउम्महे पयडो। दाणवहोरो तह सीलं तवभावेण नामए अमलं ॥७॥ नाणं-दसंण-चरणं रयणत्तयं जीववावहयं हबइ। तह कहियं पि हु सम्मं नाणयहाणं विक्खेइहिं ।।८।। लोयण तइयं नाणं नाणं दीवंत मोह-रसयलं । नाणं ति हुयणसूरं नाणं अप्पाणं मल-दहणं ॥९॥ नाणं धरइ सम्मं जीवं पडियं महापया मझे। जह सईय मलयसुंदरि वोहए गोसिलो गवे ॥१०॥ अत्थि इह भरहवासे पसिद्ध चंदावाइ पुरी नामे । कणय-मणि-मंदिरेहिं पायारगं तुंह-सिहरे हिं ।।११।। दयासहिओ जहि लोए महाजणो वसइ जत्थ वरसिद्धा। इंदपुरी सारिच्छा मढजिणवर विहं अच्छरियं ।।१२।। सिरि वीरधवल नामे अस्थि निबो तत्थ केसरी सरिसो।। मायंगअरि-नरिंदाण जेण कुंभत्थलं दलियं ।।१३।। अंतिम अंश जह सोलु धवलु पापिउ मल या सई पतिसंकडे पडिओ। तिम हो भव्वयणं तुम्हं रक्खंतह सुह फलं होइ ॥७९३।। तह तवि महावलेणं सहिओ उवसग्ग-पामियओ मुख्खो। तिम जे निचल-ठाणं लहति ते भविय संसिद्धि ॥७९४॥ जह तिवयं कीयं जंपइ-गुरुमाणि पाविओ मुक्खो। जं कुणहि भविय ते पुणो लहंति सिववास निच्छय इओ ॥७९५।। पुवकहा अनुसरि रइयं हरीराज मलयावरचरियं । हेमस्सद्देउ सुक्खं हेमप्पह वीरजिणचंदो ।।७९६॥ साटक सोउणं भव पुत्व दिक्खमहिया सुरेणं वीरेणे वा। काउण कम्मं खयं गया सिवपयं पच्छासु पउमासुयु । लणं मलयामहत्तरपयं जाइगयं सासिवं हेमप्पहरिया कियं पडलए सुक्खं चउहिंकारा ॥७९७।। संवत् १६२८ चेतवदि ९ सोम । १८२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524572
Book TitleTulsi Prajna 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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