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________________ आवश्यक है, जिसके लिए अब मैदान खुला है । 'अणुव्रती संघ' सामने है। युवक पहले कहा करते थे, आध्यात्मिक जीवन साधुओं में ठीक है। गहस्थ में उसका कोई असर नहीं। वह समय अब नहीं रहा । या तो युवक इस नवीन क्रांति का साथ दे या क्रान्ति की थोथी बातें करना छोड़ दे।” । __ एक मार्च, १९४९ को 'अणुव्रती संघ' का विधिवत उद्घाटन हुआ। कुल ११३ पुरुष और ७१ महिलाएं संघ की सदस्य-सदस्याएं बनीं। इनमें ६१ दम्पतियों ने ब्रह्मचर्य-अणुवत भी अपनाया । यह एक नयी क्रांति का सूत्रपात था । सन् १९५० के जयपुर-चातुर्मास में इस क्रान्ति को प्रसार मिला । तीस अप्रेल सन् १९५० को जब अणुव्रती संघ का प्रथम अधिवेशन पुरानी दिल्ली के टाऊन हॉल पर हुआ तो यह क्रांति सार्वजनिक हो गई। पी. टी. आई. और ए. पी. आई. समाचार एजेंसियों ने अणुव्रतअधिवेशन की खबरें प्रसारित की। इस अधिवेशन में छह सौ पच्चीस व्यक्तियों ने व्रत ग्रहण किये । 'हिन्दुस्तान टाइम्स', 'हिन्दुस्तान स्टैण्डर्ड', 'आनन्द बाजार पत्रिका', 'हरिजन सेवक' आदि समाचार-पत्रों में व्रत ग्रहण की रिपोर्ट छपी। 'स्टेटस् मैन' के सम्पादक सर आर्थर मूर ने आचार्यश्री का लम्बा "इन्टरव्यू" लिया और फिर आचार्यश्री का ‘कान्स्टीट्यूसन क्लब' में भाषण हुआ । नौ नवम्बर सन्, १९५१ को राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के विशेष निमंत्रण पर आचार्यश्री राष्ट्रपति भवन पधारे और चौदह नवम्बर को प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू को दर्शन देने गए। इस प्रकार अणुवत का विचार, मंत्र बन कर चौतरफ-देश विदेश में, सर्वत्र फैल गया। उसके विस्तार और प्रसार की गति को न्यूयार्क (अमेरिका) के 'टाइम'समाचार पत्र में १५ मई, सन् १९५० को छपे इस समाचार से अनुमान किया जा सकता है एटोमिक बम अन्य अनेक स्थानों के कुछ व्यक्तियों की तरह एक दुबला, ठिगना, चमकीली आंखों वाला भारतीय संत संसार की वर्तमान स्थिति के प्रति अत्यन्त चिन्तित है । ३४ वर्ष की आयु का यह आचार्य तुलसी है, जो जैन तेरापंथ समाज का आचार्य है। यह अहिंसा में विश्वास करने वाला धार्मिक समुदाय है। आचार्य तुलसी ने सन् १९४६ में 'अणुव्रती संघ' की स्थापना की थी।..... जब वे समस्त भारत को व्रती बना चुकेंगे तब शेष संसार को भो व्रती बनने की उनकी योजना है। दरअसल आचार्यश्री तुलसी का जीवन सोद्देश्य है। वह युगधर्म के प्रवर्तक आचार्य हैं। योग वाहक आचार्य हैं । जैन समन्वय की दिशा में अनवरत प्रयत्नशील होकर वे जन जन के कल्याण की कामना में लगे हैं । इसीलिये उन्होंने अणवतअभियान को प्रारंभ किया और आज जबकि उनका सतावनवां पाटोत्सव है यह आन्दोलन दिग्दिगन्त व्यापी हो रहा है। -परमेश्वर सोलंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524571
Book TitleTulsi Prajna 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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