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संपादकीय
अणुव्रत-प्रस्तोता का ५७वां पाटोत्सव
आचार्य तुलसी सन् १९३६ की २६ अगस्त (भाद्रपद शुक्ल नवमी) को पाट बिराजे । इससे पूर्व १२ वर्ष तक गुरु-शिक्षा ली और अपनी आत्मशक्ति में असाधारण विकास किया। पुनः १२ वर्ष तक अपने शिष्य-परिवार के साधु-साध्वियों के कल्याण हेतु गहन चिन्तन किया और अपने गुरु कालगणी की जन्म तिथि फाल्गुन शुक्ल द्वितीया (मार्च-१, १९४९) को 'अणुव्रती संघ' का गठन हुआ।
'अणुव्रती संघ'-निर्माण का विचार सरदारशहर और फतेहपुर के प्रवासों में जन्मा । सन् १९४६ की फरवरी में आचार्यश्री सरदारशहर में विराज रहे थे । वहां सेठ छोगमल चोपड़ा और सेठ नेमचंद एम. एल. ए. (बीकानेर) आदि के निमन्त्रण पर एच. मेरी स्पेन्स (धर्मपत्नी सर पेट्रिक स्पेन्स, सी. बी. ई., प्रधान न्यायाधीश, भारत सरकार) और कुमारी एम. शेफर्ड (मुख्य संघठक, सामाजिक स्वास्थ्य, नैतिकता और सदाचार सभा, भारत) सरदारशहर आई और उन्होंने आचार्यश्री से नैतिकता, सदाचार और कानून-व्यवस्था संबंधी अनेकों प्रश्न पूछे । फतेहपुर में पुनः प्रश्नोत्तर हुए।
उक्त प्रश्नोत्तरों की छाया राजगढ़, रतनगढ़ और छापर के अगले चातुर्मासों पर छाई रही । सन् १९४९ की जनवरी में मर्यादा-महोत्सव राजलदेसर में हुआ। वहां भी चिन्तन जारी रहा । चार फरवरी को वहां पेरिस (फ्रांस) के संस्कृत प्रोफेसर रेणु पधारे । २४ फरवरी को आचार्यश्री सरदारशहर पहुंचे । २५ फरवरी को वहां अखिल भारतीय विधान परिषद् के सदस्य मिहिर बन्योपाध्याय एम. पी. आचार्यश्री
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