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________________ समस्त वस्तुओं को समझना या जानना कठिन है। किन्तु इन सब वस्तुओं में से कुछ वस्तुओं में समान धर्म होते हैं, जो अन्य वस्तुओं में नहीं होते । इन समान धर्मों के आधार पर वस्तुओं को अलग-अलग कोटि में रख देते हैं। यहां से विचार-प्रणाली की संश्लेषात्मक प्रक्रिया चालू हो जाती है । जिसके दो चरण है। प्रथम चरण में संश्लेषण प्रक्रिया में जगत् के समस्त विषयों को समान धर्मों के आधार पर छः घटकों में जीव पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल -रख देते हैं। दूसरे चरण में इन छहों द्रव्यों में समानता देखी जाती है जो उत्पत्ति, विनाश और स्थिरता इन तीनों रूपों में प्राप्त होती है । ये तीनों पक्ष जगत् के समस्त विषयों में पाये जाते हैं जिसके आधार पर सब वस्तुओं या विषयों या छहों द्रव्यों को एक वर्ग-द्रव्य-में रख देते हैं। यह संश्लेषण की अन्तिम अवस्था है । इसके पश्चात् संश्लेषण से विश्लेषण की ओर द्रव्यों को घटाते हुए परीक्षण कर लिया जाता है, और अन्त में जगत् तथा उसके विषयों की एक व्यवस्था दे दी जाती है, जो सिद्धान्त के रूप में फलित होता है। इस प्रकार विश्लेषण द्वारा अनेकान्तवाद पर तथा संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा सत् या द्रव्य सिद्धान्त पर पहुंचते हैं । विचार पद्धति की विश्लषण तथा संश्लेषण प्रक्रिया को एक चित्र के द्वारा समझा जा सकता हैक धर्म एक इन्द्रिय जीव ख धर्म दो इन्द्रिय जीव ग धर्म पक्षी धर्म तीन इन्द्रिय जीव जीव घ धर्म चार इन्द्रिय जीव पांच इन्द्रिय जीव नित्य धर्म ड़ धर्म क धर्म ख धर्म ग धर्म प्रतिपक्षी धर्म घ धर्म क वस्तु ड़ धर्म पृथ्वी जल अग्नि वायु मन कर्म इन्द्रियां पुद्गल क अवस्था ख अवस्था ग अवस्था अनित्य धर्म घ अवस्था ड़ अवस्था च अवस्था क धर्म विश्लेषण ख धर्म प्रक्रिया ग धर्म पक्षी धर्म जगत् संश्लेषण प्रक्रिया द्रव्य धर्म खण्ड १८, अंक १ (जनवरी-मार्च, ६२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524570
Book TitleTulsi Prajna 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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