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________________ उल्लेख है। उझिका, कंचूला, कोडाया, यक्षि, धोसा, नदूतराया, धम्मगुत्त माता पुसदेवा, मित्तादेवा, सामिदत्ता, सोनाय, श्रवणा, सकाय, अवासिका आदि ऐसे नाम यद्यपि आज जैन परिवारों में प्रचलित नहीं हैं किंतु दान की उदार परम्परा किसी भांति कम नहीं है। उक्त शिलालेखों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि आज से दो हजार वर्ष पूर्व जैन संयुक्त परिवार में नारी का विशेष स्थान रहा है । यह संभव हैं कि जो जातियां जैन धर्मावलम्बी हैं, उस समय अन्य जातियां रही हों किन्तु जैन धर्म परम्परा ने नारी जाति को गौरवान्वित ही किया है । लखनऊ-संग्रहालय का एक लेख (संख्या-लख० जे० २०) पंक्ति (१) ...... सं० ७०+६ व्र० ४ दि २० एतस्यां पूर्वायां कोट्टिये गणे वैरायां शाखाय पंक्ति (२) ........ को अय वृध हस्ति अरहंतो नन्दिआवर्तस प्रतिमा निवर्तयति पंक्ति (३) ........ भार्याये श्राविकाये दिनाये दान प्रतिमा द्वे थूपे देव निर्मिते प्र० अर्थात् वर्ष ७६ की वर्षा ऋतु के चतुर्थ मास के २० वें दिन कोटयगण की वैर शाखा के आचार्य वृद्धहस्ति ने अर्हत् नन्दि आवर्त प्रतिमा का निर्वतन कराया। (यह निवर्तन)-भार्या श्राविका दिना के लिये था जिससे देव निर्मित स्तूप में दो प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हुईं। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524570
Book TitleTulsi Prajna 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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