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________________ जले आगम का और मन हंसा मोती जुगे जैसे स्वतंत्र प्रकाशनों के साथ आचार्यश्री के प्रवचनों का 'प्रवचन पाथेय ग्रन्थमाला' रूप में भी प्रकाशन किया जा रहा है जिसका १२वां प्रकाशन विगत माह ही छपा है । तेरहवां प्रकाशन—'आगे की सुधि लेई' नाम से इसी माह फरवरी ६२ में प्रकाशित हुआ है। इसमें आचार्यश्री द्वारा अपनी श्रीगंगानगर क्षेत्र की यात्रा में दिये गए सन् १९६६ के लगभग तीन महिनों के प्रवचनों का संकलन है। ___ संपादन की दृष्टि से इस प्रकाशन में अभिवांछित परिष्कार हुआ है । अनुक्रमपूर्वक शीर्षक देकर प्रवचनों को मुद्रित किया गया है और अन्त में पारिभाषिक शब्दों के अर्थ देकर सांकेतिका नाम से अकरादिक्रम से इन्डेक्स (नामानुक्रम) भी दे दिया गया है। आचार्यश्री के प्रवचनों से संग्रह करके कतिपय प्रेरक वचन भी पृष्ठ संख्या के साथ एक परिशिष्ट रूप में पुनः मुद्रित किए गए हैं। इसके अलावा प्रवचनों में शीर्षक अनुरूप विषय को स्पष्ट करने के लिए प्रघट्टकों के लघु शीर्षक भी लगाए गए हैं। इस प्रकार प्रवचन को अधिकाधिक विस्पष्ट और रोचक बनाने की चेष्टा हुई है। इस संग्रह में कुल ५४ प्रवचनों का संग्रह है। धर्म या धर्म संबंधित आठ प्रवचन हैं किन्तु प्रत्येक प्रवचन की विषय वस्तु अलग है। आचार्यश्री के प्रवचन समस्या समाधान में भी सहायक हैं, इसके लिए वे बहुत से दृष्टान्त और ऐतिहासिक संदर्भ सुनाते हैं जो रोचक होने के साथ-साथ विषयवस्तु को भी निखार देते हैं। वास्तव में प्रवचनकार जब प्रवचन करता है तो उसके सामने जनता होती है। जनता में विद्वान् और साधारणजन-दोनों प्रकार के व्यक्ति होते हैं। वे उस समय ऐसी बात सुनना चाहते हैं, जो सुनने के साथ-साथ आत्मसात् हो जाएं। उस समय पांडित्य के प्रदर्शन की अपेक्षा नहीं रहती। जनभाषा, जनजीवन के लिए उपयोगी बातें, जनसमस्याएं एवं उनके समाधान, जनता की अपेक्षाएं और प्राथमिक रूप की तात्त्विक एवं सैद्धांतिक चर्चा-इन बिन्दुओं को ध्यान में रखकर किया जाने वाला प्रवचन ही सहज रूप में जनभोग्य बनता है। आचार्यश्री को यह तथ्य पूर्णतया विदित है, इसलिए उनके प्रवचन हृदयग्राही, रोचक और उपयोगी होते हैं। __'जैन विश्व भारती' इन प्रवचनों को प्रकाशित करके बहुत ही उपयोगी कार्य कर रही है । यथातथ्य संपादन के मुनि धर्मरुचि बधाई के पात्र हैं। -विश्वनाथ मिश्र ३. दो काव्य कृतियां : १. गीतों का गुलदस्ता-द्वितीय संस्करण, सन् १६६१, कवि-मुनिश्री सुखलालजी, मूल्य-१० रुपये, पृष्ठ ११४+११, प्रकाशक-के. जैन पब्लिशर्स, ४२६, हिरणमगरी, सेक्टर-११, उदयपुर । २. उलझे तार---द्वितीय संस्करण, सन् १९९१, कवि--मुनि श्री सुखलालजी, मूल्य-१० रुपये, पृष्ठ-८४+६, प्रकाशक-आदर्श साहित्य संघ, चूरू । लगभग तेरह वर्ष पहले मुनि श्री सुखलालजी की प्रारंभिक कविताओं के दो संग्रह खण्ड १७, अंक ४(जनबरी-मार्च, ६२) २३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524569
Book TitleTulsi Prajna 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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