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________________ २० वीं सदी के आरम्भ में जन्में फ्रायडवाद की विचारधारा से भारत के अनेक मनीषी भी प्रभावित हुए बिना न रह सके। जिनमें से एक है श्री रजनीश । आपके मतानुसार भी मनुष्य जाति सर्वाधिक पीड़ित है तो कामवासना से । इस संबंध में एक ही वाक्य द्वारा इस प्रसंग का उत्तर देना ठीक रहेगा कि-जैन दर्शन का अंग हैव्याख्या प्रज्ञप्ति (भगवती) सूत्र । जिसमें एक स्थान पर वर्णन आता है "नारकीयों में भय संज्ञा, देव में परिग्रह संज्ञा, तिर्यचों में आहार संज्ञा और मनुष्य जाति में मैथुन संज्ञा अधिक रहती हैं।" इतनी सी बात को कि- "मनुष्य में कामवासना (मैथुन संज्ञा) अधिक रहती है" सिद्ध करने के लिए फ्रायड व रजनीश ने अपना सारा जीवन लगा दिया, तो हम सोच सकते हैं कि जैन दर्शन कितना विस्तृत, कितना गहन, व्यापक और चिन्तन युक्त है। १९४७ में मि० कास्टर ने 'योग और प्रतीचि विज्ञान' नामक पुस्तक में पतंजलि के योग सूत्रों और फ्रॉयड के सिद्धान्तों का सुन्दर विवेचन प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि मनश्चिकित्सा के नए संप्रदाय के सिद्धान्त के अनुसार "तुम सत्य जानोगे और सत्य तुम्हें मुक्त करेगा"-कहने का तात्पर्य मनोविज्ञान भी निरन्तर खोज करते-करते उस स्थान पर आ पहुंचा है-जिसे अध्यात्मिकता कहते हैं। इस आलेख में फ्रायडवाद व जैन दर्शन के कुछ एक पहलूओं को छुआ है । इस दिशा में और गहन अनुसंधान व खोज की जाए। संदर्भ ग्रन्थः १. फ्रॉयडवाद-ले० डॉ० मोहन व मीरा जोशी। २. मनोविज्ञान का इतिहास-रामनारायण अग्रवाल । ३.जैन तत्व प्रकाश-श्री अमोलक ऋषि जी म० सा० । ४. जीव-अजीव-युवाचार्य महाप्रज्ञ । योन्यथा सन्तमात्मानमन्यथा प्रतिपद्यते । कि तेन न कृतं पापं, चौरेणात्मापहारिणा ॥ ओ जैसा है, वह अपने आपको वैसा नहीं दिखाता, दूसरे प्रकार का प्रदर्शित करता है। ऐसे अपनी आत्मा का अपहरण करनेवाले चोर ने कौन सा ऐसा पाप है जो नहीं किया ? २०२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524569
Book TitleTulsi Prajna 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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