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________________ अर्थात् जब मुनिगण मघा में थे और महाराज युधिष्ठिर शासन कर रहे थे तो ७५ वर्ष बीते थे और कलियुग शुरू हो गया। फिर २५ वर्ष मघा में रहकर मुनि आश्लेषा नक्षत्र में प्रविष्ट हुए। रायबहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने भी इन्हीं श्लोकों के आधार पर अपनी 'प्राचीन लिपिमाला' (पृ० १५६-६०) में लिखा है'काश्मीर वाले इस संवत् का (सप्तर्षि) प्रारंभ कलियुग २५ वर्ष पूरे होने पर (२६वें वर्ष से) मानते हैं।" कश्मीरी पंडित कल्हण भी सप्तर्षियों के परिचालन को वाम (उल्टी) गति से गिनकर ही कुरु-पाण्डवों को कलियुग के ६५३ वर्ष बाद होना बताते हैं ऋक्षादृक्षं शतेनान्दै यात्सु चित्र शिखण्डिसु । तच्चारे संहिताकारैरेवं दत्तोऽत्रनिर्णयः ।। xx शतेषु षट्सु सार्धषुत्र्यधिकेषु च भूतले । कलेगतेषु वर्षाणामभूवन्कुरु पाण्डवाः ॥ कि सप्तर्षि मघा नक्षत्र से आश्लेषादि क्रम से चित्रा नक्षत्र में पहुंचे तो २४०० वर्ष बीते थे अथवा चित्रा नक्षत्र से सीधी गणना करें तो मघा नक्षत्र तक २४०० वर्ष ही होते हैं जब कलियुग शुरू हुआ, इसलिये कुरु-पाण्डव कलियुग आरंभ से ६५३ वर्ष बाद हुए। यह मानना चाहिए। यह गणना विपर्यग्रस्त और अशुद्ध है क्योंकि सप्तर्षि वर्तमान में आद्रा नक्षत्र पर्याय में हैं। यदि आश्लेषादि वाम क्रम से गणना करें तो मघा तक एक नक्षत्र पर्याय और दूसरी पर्या में आश्लेषादि से चित्रा तक ही पचास नक्षत्र अथवा पांच हजार वर्ष पूरे हो जाते हैं । किन्तु यदि सीधी, पूर्वा फाल्गुनी आदि से गणना करें तो मघा से मघा तक २८ नक्षत्र और दूसरी पर्या में पूर्वाफाल्गुनी से २३वां नक्षत्र आद्रा आ जाता है। पं० कल्हण ने अपने इस विपर्यग्रस्त निर्णय से गोनंदादि से अभिमन्यु तक ५२ राजाओं का कालमान प्रत्येक का २४ वर्ष हिसाब से १२६६ वर्ष माना है किन्तु बाद के २१ राजाओं (अंधे युधिष्ठिर तक) के लिए उसे २२६८ वर्ष जोड़ने पड़े जो प्रत्येक राजा के लिए ४६ वर्ष होने से असंगत हैं। ५. चीनी पुस्तक का प्रसंग चीन की पवित्र पुस्तक में 'दी शू'.-.रेकार्ड से दो प्रसंग दिए हैं जो काल नियामक हैं। पहले प्रसंग में बताया गया है कि राजा कुंगसांग (बी. सी. २१५६-२१४५) के पांचवें शासन वर्ष और राजा यूं (बी. सी. ७८१-७७०) के छठे शासन वर्ष में अर्थात् क्रमश: बी. सी. २१५६ और बी. सी. ७७६ में सूर्य ग्रहण हुए थे। दूसरे प्रसंग में आकाश में कृत्तिकाओं की तीन स्थितियां बताई गई हैं जो क्रमशः बी. सी. २३००, ए. डी. ०१ और ए.डी. १८७८ ईसवी को दृश्यमान थीं । इस प्रसंग विवरण के अनुसार बी. सी. २३०० में कृत्तिकाएं विषुवत् रेखा से सटी हुई थी, ए. डी. ०१ में सूर्य पथ के साथ लगभग दो डिग्री ऊपर और ए.डी. १८७८ में सूर्य पथ के साथ कर्क रेखा पर मघा खण्ड १७, अंक ४ (जनवरी-मार्च, ६२) १८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524569
Book TitleTulsi Prajna 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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