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तुलसी प्रज्ञा
16. Dr. N. K. Dash-Jainism : An old Independent Religion
(1/3-8); Jainism & Buddhism (2/39-43). १७. श्री नानालाल ज० रूनवाल-अनन्त के अनन्त भेद (१/१-४). १८. डॉ० परमेश्वर सोलंकी-आचार्य हरिभद्रसूरि का काल संशोधन (१/५-१०);
आदि कर्तृन् अर्हत् पञ्चेन्द्र (३/१०७-११०); संयमधारी साधु में लेश्याएं : एक विवेचन (३/१६१-१६४);
सप्तर्षियों से कालगणनाएं (४/१७६-१९२). 19. Dr. Premsuman Jain-Equivalent Views about Ultimate Reality
in Jainism & Buddhism (2/19-31). 20. Dr. B. K. Khadabadi-Some Thoughts on Tirukkural (3/67-75);
on the Concept of Truth in Jainism
(4/99-102). २१. बी० रमेश जैन-जैन दर्शन और पाश्चात्य मनोविज्ञान की तुलना (४/१९७
२०२)। २२. डॉ० भागचन्द जैन 'भास्कर'-जैन-बौद्ध विनय का तुलनात्मक अध्ययन (३/११६
२३. प्रो० मांगीलाल मिश्र-शाश्वत यायावरी जैन श्रमणों की (२/७७-८१)। २४. मुनि गुलाबचन्द्र 'निर्मोही'-तेरापंथ का संस्कृत साहित्य : उद्भव और विकास
(४/२०७-२१३)। २५. मुनि विमलकुमार-तीर्थंकरों के नामकरण का हेतु और उनका व्युत्पत्तिलभ्यअर्थ
(४/२१६-२२८)। २६. मुनि सुखलालजी-तेरापंथ धर्मसंघ का अवदान-आचार्य भिक्षु का राजस्थानी
साहित्य (४/२१५-२१८)। 27. R. L. Kothari-Jain Vishva Bharati-A Deemed University
(1/1-2). २८. प्रो विश्वनाथ मिश्र-ज्ञान प्रामाण्य विवेचन (२/५६-६६)। 29. V. G. Nair--Teshub or Reshub : The Arhat (3/80-83). ३०. समणी मंगलप्रज्ञा--आत्मा का वजन (२/६७-६८)। ३१. साध्वी राजमती-आदमी बूढ़ा क्यों होता है ? (२/६६-७२)। ३२. साध्वी डॉ० सुरेखाजी-क्या सामान्य केवली के लिए अर्हन्त पद उपयुक्त है ?
(२/८३-८८)। ३३. डॉ० सुषमा सिंघवी-जैन नय-न्याय द्वारा तत्त्वार्थ निर्णय (३/१३३-१४३) । इ-परिचयात्मक सूचनाएं 1. Nagendra Kumar Sinsgh-Prosodial Practice of six Jaina poets
(10th to 13th century A.D.(2/45-47).
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