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मैं यथाकार बनना चाहता हूं / व्यथाकार नहीं । ओर / मैं तथाकार बनाना चाहता हूं / कथाकार नहीं ।
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हमारी उपास्य देवता / अहिंसा है / और
जहां गांठ-ग्रन्थि है / वहां निश्चित ही / हिंसा छलती है ।
ग्रंथि हिंसा की संपादिका है / और / निर्ग्रन्थ दशामें ही अहिंसा पलती है ।
सर्वांश में 'मूकमाटी' की तुलना किसी दूसरी कृति से अथवा शास्त्रीय मापदण्डों से उसकी विवेचना की जानी ठीक नहीं है । युगचेतना के रूप में नैतिक मूल्य और श्रमणसंस्कृति के परिवेश की अवधारणा इस काव्य में है जो एक वीतरागी, नंगधडंग महात्मा का जन होने से मानवजीवन के अन्तर्बाह्य द्वन्द्वों का सटीक चित्रण करता है । संत कवि ने मूकमाटी को मातृ रूप में देखा है और उसी के अनुरूप सबके लिए मंगल कामना की है—
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यहां - सबका सदा / जीवन बने मंगलमय छा जावे सुख छांव / सबके सब टलें / अमंगल भाव सबकी जीवनलता / हरित भरित विहंसित हो
गुण के फूल विलसित हों / नाशा की आशा मिटे / आमूल महक उठे / बस ।
ऐसे श्रेष्ठ, उदात्त और दिशाबोधकारक काव्य स्रजन और प्रकाशन के लिए उसमें निमित्त बने सभी लोग साधुवाद के पात्र हैं । ग्रंथ सभी ग्रंथालय और वाचनालयों में पहुंचना चाहिए । आधुनिक युग के युवक, युवतियां इसे जरूर पढ़े, ऐसे प्रबंध होने चाहिए ।
- परमेश्वर सोलंकी
२. आखिरी शर्त — कहानी संग्रह । लेखक - मुनि प्रशान्त कुमार | प्रथम संस्करण - १९६१ | मूल्य - दस रूपये । प्रकाशक - आदर्श साहित्य संघ, चूरू । पृष्ठ-- १३६ ।
प्रशान्त कुमार कृत पंद्रह कहानियों का संग्रह 'आखिरी शर्त' सामाजिक एवं वैयक्तिक जीवन के यथार्थ को अत्यंत संतुलित शैली में चित्रित करने वाली प्रशस्य कलाकृति है । इसमें चित्रित सामाजिक सत्य कमलेश्वर की कहानियों के सदृश भयावह नहीं है, वैयक्तिक सत्य निर्मल वर्मा की कहानियों के सदृश जटिलतर नहीं है, वह सहज सत्य है -- भले ही बंकिमता एवं कला के भड़कीलेपन से रहित प्रायः हो । 'आखिरी शर्त' की कहानियों का कथाकार नारी - जीवन के प्रति अत्यन्त संवेदनशील कलाकार है । नारी के विधवा, बहन, भाभी, माता, धनिक संबंधियों के मध्य अल्पार्थमयी संबंधी युवती, इस, उसका चित्रण करने में कलाकार को अच्छी सफलता प्राप्त हुई है । नारीसंवेदन की दृष्टि से 'आखिरी शर्त' एक उत्कृष्ट कृति हैं । महान् नारी-संवेदक जैनेन्द्र का स्मरण आता है ।
मुनि प्रशांत कुमार का मनन प्रशान्त है, कुमार - दृष्टि अकुंठित । वे नारी के
तुलसी प्रज्ञा
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