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शमथ, तत्पापीयसक जैसे दण्डकर्मों में आलोचना और प्रतिक्रमण के दर्शन होते हैं। प्रजाजनीय, मानत्व, संघादि शेष पाराजिक की तुलना जैन परंपरा के छेद, मूल और पारांचिक से की जा सकती है । गुरुमासिक, लघुमारिक, गुरुचातुमासिक और लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त भी उन्हीं दण्ड कर्मों के साथ मेल खा जाते हैं।
जिन कारणों से चित्त में एकाग्रता की प्राप्ति नहीं होती उन्हें असमाधिस्थान कहा जाता है । जैन धर्म में उनकी संख्या २० मानी गई है । १. दव दव चारी-जल्दी-जल्दी चलना, २. अप्पमार्जायचारी (रजोहरण से मार्ग को प्रमार्जित किए बिना चलना), ३. दुप्पमज्जियचारी, ४. अतिरित्त सेज्जासणिए--- (शय्या का परिमाण अधिक रखना), ५. रातिणि अवरिमासी (गुरु से विवाद करना), ६. थेरोवधाइए (स्थविर को वध आदि करने का विचार करना), ७. भूओवधाइए (प्राणियों के वध का विचार करना), ८. संजलणे (प्रतिक्षण क्रोध करना), ६. कोहर्ष (अधिक क्रोध करना) १०. अभिक्खणंअभिक्खणं ओहारइत्ता (बारम्बार निश्चयात्मक भाषा बोलना), ११. पिट्टिमंसिए (पैशून्य करना), १२. णवाणं अधिकरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाइत्ता (नवीन नवीन अनुत्पन्न विवादों को उत्पन्न करने वाला, १३. पोराणाणं अधिकरणाणं खामिअविउसविआणं पुणोदीरित्ता (पुराने शान्त झगड़ों को पुनः खड़ा कर देने वाला, १४. अकाल सज्झाय कारए (अकाल में स्वाध्याय करने वाला, १५. ससरवख पाणिपाए (सारक्त गृहस्थ से भिक्षा लेना), १६. सद्दकरे (उच्चस्वर से स्वाध्याय करने वाला) १७. झंझकरे (संघ में विभेद पैदाकारी) १८. कलहकरे, १६. सुरप्पअण भोई (सूर्यास्त तक भोजन करने वाला), २०. एसणाऽसमिते (एषणा समिति का पालन न करने वाला) । इनमें से कुछ असमाधिस्थानों की तुलना बौद्ध पातिमोक्ख के सेखिय (शैक्ष्य) नियमों के साथ और कुछ की पाचित्तिय नियमों के साथ कर सकते हैं । इसी प्रकार जैन विनय के शबलदोषों को संघादिशेष और पाचित्तिय नियमों में खोजा जा सकता है।
बिनयों की शाब्दिक तुलना जैन श्रमण विनय
बौद्ध श्रमण विनय १. गृहवासपरित्याग
गृहवासपरित्याग २. मुण्डन-केशलुञ्चन
मुण्डन आवश्यक परन्तु केशलुञ्चन वजित (अपवाद में उस्तरे से) ३. दिगम्बरत्व
अस्वीकार्य ४. काषाय और सफेद वस्त्र काषायवस्त्र ५. मूलगुण"
प्रातिमोक्षसंवर शील ७. पंच समिति
गोचर संपन्न, कुशल कायवचन
कर्मपरिशुद्ध ८. महाव्रत पालक
महाशील पालक ६. त्रिगुप्ति पालक
कायवचन कार्ययुक्त तथा चित्त विशुद्धि १०. अप्रमादी
स्मृतिमान् खण्ड १७, अंक ३ (अक्टूबर-दिसम्बर, ६१)
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