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________________ गूजी गांधी समझ्यां चिता बहु थई, खेतसीजी लूंणावत चित्त वेदी घणी जी रे । परदेश नी सुणावणी आयां सहु दुखी, लांबी कांचली पहरणवाली तो इक जणी जी रे ॥ ६२॥ इण सूं चरचा मती करो यो मूरखो, वालक मूंछ्या खांचे निज पिता तणी जी रे । समझ पायां जनक रां जतन करै घणा, सम्यक्त्व पायां सेवा यो करसी घणी जी रे ॥ ६३ ॥ dar सती सूं बोली आयें बेहुं जणी, भेली वेसी गीत गावां कुण सिरे जी रे । साखी कुण ए भडवा मांहरां चोकसी, खंडी कहै करो चरचा साख जती भरे जी रे ॥ ६४॥ म पुछ्यो कहो जी थे किसा टोला तणां, थारा गुरां नों माथो मूंड्यो तेह्ना जी रे । म्हारा गुरां रो माथो नायां मूंडियो, जात होण थे तो दीसो जेहना जी रे ||१५|| अखैरामजी स्वामी आतम वस करी, सतजुगीजी स्वामी इसी उचरी जी रे | भिक्खु भाखं पूरी पेठ नहीं जमी, सुण नैं चाल्या भिक्खु नैं साचा करी जी रे ॥ ६६ ॥ पूरो आहार न मिल एहवा गाम में, सत्यां नें चोमासो केम भलावि यँ जी रे । म्हे तो पंथ वतायो त्यां टाली दियो, स्यूं दंड देस्यो गाम ही दंड दिरावियँ जी रे ॥ ६७ ॥ मोहनगढ़ सूं अल्प आहार ल्यावियो विरतंत भिक्खु नें सुणावियो समुदाणी गोचरी करसूं हेम ऋषि कहै, अल्प धोवण ल्यायां बायां बहु लड़ी, सहु कुशील लेखो बतायो हेम ऋषि भणी, छँ महीना रो कही नै सब छोडावियो जी रे । आखे चोमासे पांतरे भावना भावियां, पांच रूपीया रा घी रो न्याय वतावियो जी रे ॥ ६६ ॥ जी रे । जी रे ॥ ६८ ॥ छँ रे वेरी देरे उधारो जगत ने, छैरे वेरी काढ कोई ना खूं चणा जी रे । अथवा करड़ी चरचां पूछ्यां कलहो बधै, हेत करें तो गमता प्रश्न पूछणाजी रे ॥ १०० ॥ आप उद्यम करो तो समझे बहुजणा, कारीगर थोड़ा मकराणे पत्थर घणा जी रे । भगोती बिचे धम्मो मंगल मांगियो, सुकन ले ज्यू जाणो खर तीतर तणा जी रे ॥ १०१ ॥ भिक्खु श्रद्धा लधी तेहनो धणी मुओ, थे क्यूं पहिय वेस ए विधवा तणो जी रे । बलाड़ा में द्रव्य गुरु विप्र लगाविया, रामचंदजी कटारीयै कष्ट कियो धगो जी रे ॥ १०२ ॥ किण ही को थे गाथा जोड़ो किण विधै, तुरंत जोड़ी शिष्य ने काम भलावियो जी रे । रोग आया हाय-हाय क्यूं करै, खोस लियां पिण सिर तो ॠण मिटावियो जी रे ॥ १०३ ॥ तूं ढांढो तो ज्ञान ते चारो हुवै, समी दरसाय श्रावक ने खुसी कियो जी रे । तो बहु बोलै ने आपलवो नहीं, यां तो घर कृष्नार पुण्य कर भिक्खु निकलतां द्रव्य गुरु आंसु नाखिया, थां विच तो म्हारी मां गुलजी खेती कीधी कंटाल्या मझ, दश रुपिया लागा उपत दश सात सात देई नै एकेक गिणूं, सात सुपारी देई नै एक सातो स्वामीजी घर में मंत्री संग दिशां गयां, मंत्री छैली लोटा ने मांजै घणो जी रे ॥ १०६॥ भिक्खनजी थे लोटो मांजो क्यूं नहीं, हूं तो लोटा मांहै भाड़े नहीं गयो जी रे । मां मूंहडो दीठां जाए नारकी, मोख देवलोक मोटो लाभ म्हैं दियो जी रे ॥१०४॥ रोई घणी जी रे । तणी गिणो जी रे । लियो जी रे ॥ १०७ ॥ ६६ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only जी रे ।। १०५।। www.jainelibrary.org
SR No.524567
Book TitleTulsi Prajna 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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