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________________ महावत रूप चारित्र की आराधना आवश्यक है। इच्छाओं का निरोध या संयम तप कहलाता है। जो ८ प्रकार के कर्मों को तपाता हो या भस्मात करने में समर्थ हो, उसे तप कहते हैं। कषायों का निरोध, ब्रह्मचर्य का पालन, जिनपूजन तथा अनशन आदि करना तप कहलाता है ।५ अतः इन चारों की आराधना करने से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा एवं मरणसमाधि इन चारों प्रकीर्णकों में एवं भगवती आराधना में आराधना के स्वरूप के साथ-साथ संलेखना द्वारा मरण समाधि का भी विस्तृत विवेचन किया गया है । भगवती आराधना में मरण के पंडितपंडितमरग एवं पंडित मरण, बाल पंडित मरण, बालमरण और बाल-बालमरण-ये पांच भेद किए गए हैं, जब के प्रकीर्णकों में बालमरण, बालपंडित मरण एवं पंडितमरण ये-तीन भेद ही बताए गए हैं। बालमरण मरने वाला विराधक होता है, उसे बोधि दुर्लभ होती है और उसका अनंत संसार बढ़ जाता है। बालपंडित मरण में श्रावक तीन शल्यों का त्याग करके घर में ही मरण करता है तथा पंडितमरण में जीव आहार आदि का त्यागकर, जिन वचन में दृढ़ श्रद्धा रखते हुए आराधक होकर तीन भव से मुक्ति प्राप्त करता है। आचार्यों ने संलेखना के २ भेद बताए हैं-आभ्यन्तर एवं बाह्य । कषायों को कृश करना आभ्यन्तर एवं शरीर को कृश करना बाह्म संलेखना है। भगवती आराधना में आराधना के साथ संलेखना का वर्णन करते हुए कहा गया है कि मरणकाल से भिन्नकाल में रत्नत्रय का पालन करने पर भी यदि मरणकाल में उसका आराधन न किया जाये तो मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती। मृत्यु काल की आराधना ही यथार्थ आराधना है । मृत्युकाल में विराधना करने पर जीवन भर की आराधना निष्फल हो जाती है। अतः मरते समय जो आराधक सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र व तप की यथार्थ आराधना करता है, वास्तव में उसी की आराधना सफल होती है । यहां विद्वानों ने प्रश्न किया है कि अन्य काल में चारों आराधनाओं का आराधन न करने पर भी, मरणकाल में इनका आराधन करने से यदि मुक्ति की प्राप्ति होती है तो क्या मरणकाल में आधारित आराधना ही मोक्ष का कारण है ? इसका उत्तर श्री अपराजित सूरि ने अपनी विजयोदय टीका में देते हुए कहा है कि-"मरणकाल में रत्नत्रय की जो विराधना है वह संसार को बहुत दीर्घ करती है (सांसारिक-मुक्ति नहीं होती), किन्तु अन्य काल में विराधना होने पर भी मरते समय रत्नत्रय धारण करने पर संसार का उच्छेद होता ही है, अतः मरण काल में सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र व तप की आराधना करनी चाहिए। ____ इस प्रकार भगवती आराधना एवं प्रकीर्णकों में सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र व तप रूप चतुष्टय आराधनाओं की आराधना को मोक्ष-प्राप्ति का साधन कहा है। जो व्यक्ति वास्तविक रूप से इन चारों की आराधना अपने जीवन में या जीवन के अन्तिम समय में करता है, वह मोक्ष रूपी लक्ष्मी का वरण अवश्य ही करता है तथा सांसारिक आवागमन के बन्धन से मुक्त हो परम सद्गति को प्राप्त होता है । खण्ड १६, अंक ३ (दिस०, ६.) २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524564
Book TitleTulsi Prajna 1990 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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