SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -५१६१ - ६१२ ई० पू० आता है और वह ऐतज्मा संवत्सर से अभिन्न हो जाता है। ५४३ ई०पू० का शक-संवत् सम्बद्ध लेखक ने स्याम में प्रचलित "पुत्तसकरात संवत्सर" और खोतान के किसी बौद्ध राजा के पुत्र द्वारा प्रवर्तित "देवपुत्रशक संवत्सर" का भी उल्लेख किया है जिसका प्रारम्भ ५४३ ई० पू० से बताया गया है। सिंहली परम्परा ५४३-५४४ ई० पू० को बुद्ध का निर्वाणकाल मानती है । सिंहली परम्परा यदि ठीक होती तो स्याम और खोतान के बौद्ध ५४३ ई० पू० से शुरू हुई काल-गणना का सम्बन्ध किसी राजा से जोड़ने की भूल कदापि न करते । अत: सिंहली परम्परा वैसी विश्वसनीय नहीं है जैसा लोग समझते हैं । बुद्ध का निर्वाण-काल (महावीर का भी ५४३ ई० पू० से निःसंदेह बहुत पहले है। विविध शक संवत् पर्याप्त जानकारी के अभाव में मैं सुमतितन्त्र और तिलोयपण्णत्ति के सन्दर्भो के बारे में अभी कुछ भी नहीं कहूंगा । किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि 'शक' नाम से दो संवत् बृहत्तर भारत में प्रचलित थे जो ५४३ ई० पू० और ६१२ ई० पू० से शुरू हुए थे। भारत में युधिष्ठिर शक, शालिवाहन शक और विक्रम शक या शाक तो प्रचलित हैं ही, कुछ ऐसे शक भी उल्लिखित मिलते हैं जिनका आरम्भ कब हुआ कहना कठिन है । भट्ट उत्पल ने वराहमिहिर के बृहज्जातक (७६) की टीका में यवनराज स्फुजिध्वज का एक श्लोक दिया है जिसमें १०४४ शक का निर्देश है । इसका आरम्भ कब हुआ यह अभी अज्ञात ही है । किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि 'शक', 'शाक' और 'शककाल' संवत् के पर्यायवाचक रूप से साहित्य और अभिलेखों में प्रयुक्त होते आये हैं। अनावश्यक मानकर यहां प्रमाण नहीं दिये । यहां विचारणीय केवल यह है कि कालगणना के लिए प्रयुक्त शक, शाक या शककाल जैसे शब्दों का अर्थ क्या है ? शकराजा, शकेन्द्र, शकभूभुज आदि का अर्थ शक, शाक और शककाल के बदले शकेन्द्रकाल, शक नृपतिकाल, शकभूभुज्काल जैसे पदों का प्रयोग भी साहित्य और अभिलेखों में प्राप्त है जिससे इस धारणा की सृष्टि हुई है कि शकाब्द अथवा शककाल का सम्बन्ध शक नाम की विदेशी जाति के राजाओं से है और वह जाति १५० ई० पू० में भारत आयी थी ऐसा बहुजन स्वीकृत विश्वास है । इस विश्वास से 'शक' शब्द मूलतः विदेशी और १५० ई० पू० के पहले भारत में अप्रचलित ठहरता है। हमें इस प्रचलित धारणा में निम्नलिखित दोष दिखायी देते हैं :--- (१) शकजाति से सम्बन्धयुक्त 'शक' शब्द का प्रचलन १५० ई० पू० भारत में हो ही नहीं सकता। अतः इससे पूर्ववर्ती गणनाओं के साथ 'शक' शब्द नहीं जुड़ना चाहिए किन्तु ५४३ ई० पू०, ६१२ ई० पू० और यहां तक कि युधिष्ठिर की कालगणना के लिए भी उसका प्रयोग मिलता है । तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524563
Book TitleTulsi Prajna 1990 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy