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________________ भावना से जुड़ जाता है। खैर, जो भी हो, पृथ्वीकाय की यह अवधारणा जैनों का एक अपना मौलिक चिंतन है और जैन ग्रंथों में इस पर व्यापक चर्चा हुई है जिसका संक्षिप्त रूप यहां प्रस्तुत किया गया है। संदर्भ: १. पंचसंग्रह, १२६६ २. ठाणांग, ६।३।४८०, प्रज्ञापना, पद १, सू० १२, अणुओगद्वाराई, ५, षट्खंगागम, १११, १, ३९-४२१२६४-२७२, कर्मग्रंथ ४, गाथा १०, तत्त्वार्थसूत्र, २।२२, तिलोयपन्नति, ५२२७८, राजवार्तिक, ९७१११६०३।३१, गोम्मटसार, जीवकांड, १८११४१४ ३. प्रज्ञापना, मलयगिरि टीका, पृ० ६९-७० ४. आचारांग नियुक्ति, ११२७१ प्रज्ञा. १३१३, जीवाभिगम, १८, 'उत्तराध्ययनसूत्र', ३६७० ५. आचारांग नियुक्ति, १।१।२, टीका ७१, धवला, ३३१,२,८,७।३३११२ गोम्मटसार जीव कांड १८४४१६।१४, कार्तिकेयानुप्रेक्षा, १२७, प्रवचनसार, १६८।२३०॥१३ ६. आचारांग नियुक्ति, १।२।२१७१, उत्तराध्ययन सूत्र, ३६७८ ७. ठाणं, २।१२८, जीवाभिगम, १।१४, प्रज्ञापना, १११४, उत्तराध्ययन सूत्र, ३६७०, अणुओगद्दाराइं, ७ ८. भगवई, शतक, ६,४॥६३, प्रवचनसारोद्धार, द्वार २३२, गाथा, ३१, कर्मग्रन्थ, प्रथम भाग, गाथा ४६ ६. भगवई, ८।१।१८, समवाओ, १४।१, कर्मग्रंथ प्रथम भाग, गाथा, ४६, प्रज्ञापना, १११४, टीका १०. आचारांग नियुक्ति, ११११२१७१, टीका, धवला, ६।१६-१, २८१६१८ ११. आचारांग नियुक्ति, १।१२।७२, प्रज्ञापना, १११५, उत्तराध्ययन सूत्र, ३६।७१ १२. प्रज्ञा०, १११६, उ० सू० ३६७२ १३. सोहा य पंचवण्णा'......। एवं तत्र श्लक्ष्णबावर पृथिवी कृष्णनील लोहितपीत शुक्ल भेदात्पञ्चधा। -आचारांग नियुक्ति, ११११२७२, टीका १४. आचारांग नियुक्ति, १।१।२।७३-७६ १५. उत्तराध्ययनसूत्र, ३६१७३,७४,७५,७६,७७ १६. पंचसंग्रह, ११७७ १७. मूलाचार, २०६,२०७,२०८,२०६ १८. प्रज्ञापना सूत्र, १११७ १९. आचारांग नियुक्ति, १३११२,७६ टीका, प्रज्ञापना, ११२५ २०. आचारांग नियुक्ति, १३१२२७७, टीका, प्रज्ञापना, १२२५ खण्ड १६, अंक २ (सित ९०) १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524563
Book TitleTulsi Prajna 1990 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangal Prakash Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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