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पृथ्वीकाय: एक विवेचन
डॉ० रज्जन कुमार*
__इस संसार में ऐसे भी जीव पाए जाते हैं जो बाह्य अनुभूतियों का संवेदन मात्र एक इन्द्रिय की सहायता से ही करते हैं, इसलिए इन्हें एकेन्द्रिय जीव कहा जाता है। क्रम से जीवों का विकास होता जाता है और उसके इन्द्रियों की संख्या बढ़ती जाती है। जीव के विकास एवं इन्द्रियों की संख्या में गहरा संबंध है। यह व्यावहारिक एवं स्वअनुभव की ही बात है, क्योंकि हम देखते हैं कि ज्यों-ज्यों जीवों का विकास होता जाता है त्यों-त्यों उनकी सांसारिक अनुभूतियों के संवेदन करने की क्षमता बढ़ती जाती है । जैसे-एकेन्द्रिय में मात्र स्पर्श करने की क्षमता होती है, परन्तु इससे विकसित जीव द्वीन्द्रिय में स्पर्श और रस अर्थात् स्वाद ग्रहण की क्षमता होती है। तात्पर्य यह है कि एकेन्द्रिय में जहां मात्र स्पर्शन् इन्द्रिय होती है, वहीं द्वीन्द्रिय में स्पर्शन और रसन् इन्द्रिय होती है । इसी तरह त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय आदि जीव को समझना चाहिए। यह स्पष्ट ही है कि एकेन्द्रिय से द्वीन्द्रिय अधिक विकसित है, द्वीन्द्रिय से त्रीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय से पंचेन्द्रिय क्रम से अधिक विकसित जीव है।
प्रत्येक इन्द्रिय का अपना अलग-अलग विषय होता है तथा एक इन्द्रिय अन्य दूसरी इन्द्रिय के विषय को ग्रहण नहीं कर सकती है । अतः ज्यों-ज्यों जीवों में विभिन्न तरह की इन्द्रियों का विकास हो जाता है त्यों-त्यों क्रम से उनमें बाह्य संवेदनाओं की अनुभूति की क्षमता बढ़ती जाती है । इन्द्रियों की संख्या विकसित जीवों में क्रम से क्यों बढ़ती जाती है इसे इस तरह समझा जा सकता है-जीव का जब विकास होगा तब उसकी आवश्यकताएं बढ़ेगी और बढ़ी आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए साधन की आवश्यकता होगी। चूंकि संवेदनाओं की अनुभूति इन्द्रियों के द्वारा ही संभव है अतः इन्द्रिय की संख्या और जीव के विकास का सम्बन्ध समझ में आ जाता है।
जीव-विज्ञान भी इस बात से सहमत है कि जीवों के विकास के साथ-साथ इन्द्रियों की संख्या में भी वृद्धि होती है । यद्यपि जीव वैज्ञानिकों ने मात्र इन्द्रियों के आधार पर ही जीव की विकासशीलता का मापदंड निर्धारित नहीं किया है, परंतु इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता है । क्योंकि जीव के विभिन्न वर्गों के विभाजन में यह बात परिलक्षित हो जाती है कि छोटे-छोटे जीवों में इन्द्रिय की संख्या कम होती है और निरंतर विकास के फलस्वरूप उनमें इन्द्रिय की संख्या बढ़ती जाती है। उदाहरण स्वरूप * रिसर्च एसोसिएट, भोगीलाल लेहरचंद शोध संस्थान, दिल्ली खण्ड १६, अंक २ (सित०, ६०)
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