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________________ क्रोध कषाय में सर्वप्रथम है । शान्तात्मा से पृथग्भूत क्षमा रहित भाव क्रोध है । एक अन्य परिभाषा के अनुसार 'स्वपरोपघात निरनु ग्रहाहिकोर्य परिणामो अमर्षः क्रोधः' अपने या पर के उपघात या अनुपकार आदि करने का क्रूर परिणाम क्रोध है । द्रव्य संग्रह टीका में —— 'अभ्यन्तरे परमोपशम मूर्ति केवल ज्ञानाद्यनन्तगुणस्वभाव पर मात्मस्वरूप क्षोभ कारकाः । बहिविषयेत्मे परेषां संबन्धित्वेन क्रूरत्वाद्यावेश' । अर्थात् अन्तरंग में उपमग मूर्ति केवल ज्ञानादि अनन्त गुण स्वभाव परमात्म रूप में क्षोभ उत्पन्न करने वाले तथा बाह्य विषय में अन्य पदार्थों के संबंध से क्रूरता आवेश रूप क्रोध है | साहित्य दर्पण में इस विश्वनाथ कविराज ने इसे रौद्ररस का स्थायी भाव माना है । 1 प्रसिद्ध आलोचक रामचन्द्र शुक्ल ने इसे शान्ति भंग करने वाला मनोविकार गिनते हुए बैर को क्रोध का अचार या मुरब्बा गिना है। इस प्रकार क्रोध की परिभाषा - पक्वावस्था क्रोध, क्रूरता, बैर का हेतु है । क्रोध के पर्याय हैं- कोप, अमर्ष, रोष, 1 हर प्रतिघरुट, कृत, भीम, रूपा, हेल, हृणि, तपुषी, मृत्यु, चूणि, एह आदि । क्रोध एक वत्सर भी है, जिसके आने पर सकल जगत् आकुल हो जाता है एवं प्राणियों में क्रोध भाव की बहुलता रहती है। यह रजोगुणात्मक और तमोगुणात्मक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसकी उत्पति ब्रह्मा के भ्रू से हुई है । क्रोध का अनुभव समस्त शरीर में कम्पन, रक्त कमल के सदृश दोनों नेत्रों का आरक्त होना, भूभंग से भी भयंकर आकृति पैदा करता है क्रोधेनेत धून कुन्तल भटः सर्वांग जोवे पशुः किन्चित् कोकनदस्य सदृशे नेत्रे स्वयं रज्यतः ॥ वत्ते कान्तिमिदं च वक्त्रमन्यो मंगेन भिन्नं भ्रुवो: : । चन्द्रस्यद्ट लाञ्छनस्य कमलस्योद्भ्रान्त भृंगस्य च ॥ जैन मान्यता के अनुसार भी क्रोध में हृदय दाह, अंग कम्प, नेत्र रक्तता और इंद्रियों की अपटुता उसके प्रभाव हैं । भौंह चढ़ाने के कारण जिसके ललाट में तीन बली पड़ती है, शरीर में संताप होता है, कांपने लगता है - वह क्रोध सब अनर्थ की जड़ है । आधुनिक मनोविज्ञान में जेम्स लेंज का सिद्धान्त भी क्रोध के इन अनुभावों का समर्थन करता है । भारतीय चिंतन धारा में क्रोध पर विशेष विचार हुआ है। शायद ही कोई ऐसा आप्त ग्रंथ हो, जिसने इस मनोविकार या कषाय की विवेचना नहीं की । अनेक काव्य-ग्रंथों में क्रोध की मीमांसा की गयी है । जैन धर्म व तत्त्व चिंतन में तो कवाय में सर्वप्रथम इसे परिगणित किया है। इस पर विचार करने के पूर्व हम भारतीय वाङ्मय में उपलब्ध क्रोध सम्बन्धी कुछ अभिमत देखें । काम के सदृश ही क्रोध से पराभूत होने पर विवेक और संयम नष्ट हो जाता है। वह भी नरक का एक द्वार है । वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट उल्लेख है— क्रोध से भर जाने पर कौन पाप नहीं करता । मनुष्य गुरुजनों की भी हत्या कर खण्ड १५, अंक ४ (मार्च, ६० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only ३१ www.jainelibrary.org
SR No.524561
Book TitleTulsi Prajna 1990 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size4 MB
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