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विद्वानों को सम्मतियाँ
(1)
श्री बलसुखभाई, भू० पू० निदेशक, ल० दा. भारतीय विद्या मन्दिर, अहमदाबाद ___ तुलसी प्रज्ञा का 4-1 अंक मिला । लेख अच्छे हैं । संशोधन दृष्टि भी व्यक्त होती है। श्री पू० मुनि नथमल जी ने प्रज्ञापना के पाठ का संशोधन किया है, वह उचित है । उसके लिए उसका आभार । अन्य लेख भी अच्छे हैं ।
अंग्रेजी लेखों में diacritical marks होना जरूरी है। उसका प्रेस में अवश्य प्रबन्ध करावें अन्यथा विदेशी विद्वानों के लिए पढ़ना कठिन होगा।
लेख भी अच्छे हैं।
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(2).
श्री अमृतलाल जैन, अध्यक्ष, जैन दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, बनारस :
तुलसी प्रज्ञा का अंक (2-3) प्राप्त हुआ। तुलसी प्रज्ञा को मैंने तथा विश्वविद्यालय के अन्य कई विशिष्ट विद्वानों ने ध्यान से पढ़ा। सभी ने मुक्तकंठ से इसकी सराहना की। अभी लेख गवेषणात्मक हैं । यह हर बुद्धिजीवी के लिए अक्षरशः पठनीय है ।
(3)
श्री भागचन्द जैन, अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, दमोह :
'तुलसी प्रज्ञा' का सितम्बर 77 का अंक प्राप्त कुर हादिक प्रसन्नता हुई । संक्षेप में यही कह सकता हूं कि 'तुलसी प्रजा' का यह अंक बहुत समृद्ध, ज्ञानवद्धंक एवं अधुनातन साजसज्जा से मण्डित है । सम्पादकों की सूझ बुझ ने इसे अधिक उपयोगी और विद्वद्-भोग्य बना दिया है।
(4) डा० लालचन्द्र जैन, व्याख्याता, प्राकृत शोध संस्थान, वैशाली :
इम अंक में प्रकाशिक सामग्री अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं गवेषणात्मक है । पहले की अपेक्षा प्रज्ञा का स्तर तथा कलेवर काफी ऊँचा हो गया है । शोधाथियों के लिए प्रज्ञा अत्यधिक उपयोगी है। स्याद्वाद के फलित, क्रियामाणं कृतम् तथा किपागफलोवमा विसया निबन्ध अत्यधिक आकर्षक हैं । इस अक को दर्शन-विशेषांक भी कहा जा सकता है ।
(5)
श्री विमल कुमार जैन सौरया, उपमन्त्री, अखिल भारतीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद् :
पत्रिका का प्रकाशन अपने आप में गरिमामय है । प्रत्येक लेख की सामग्री दुर्लभ और साहित्यिक दृष्टि से सर्वतो महत्वपूर्ण है । जन-दर्शन के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग पर विद्वानों की विचारशैली आधुनिक विज्ञान के परिपेक्ष्य में प्रकाशित होती रहे ।
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