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(7) ब्रह्मपुराण में कहा है:
(क) “जो पुरुषोत्तम क्षेत्र में कल्पवृक्ष के निकट कलेवर का त्याग करते हैं वहां मृत वे मनुष्य विष्णुलोक में प्रयाण करते हैं ।
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(ख) "जो सब पुरुष इस प्रकार देहत्याग करते हैं वे निसंशय मुक्त होते हैं । जो वट और सागर के मध्यभाग में कलेवर का त्याग करते हैं वे दुर्लभ परम मोक्ष को प्राप्त करते हैं इसमें संशय नहीं ।" 131
(ग) “अतः जो सम्यक् मोक्षाभिलाषी हैं वे सर्व प्रयत्न कर पुरुषोत्तम क्षेत्र में देह त्याग करें ।" 132
(8) लिंगपुराण में कहा है : "यदि कोई ब्राह्मण श्रीशैल पर अपने शरीर का त्याग करता है तो वह पापों को दग्ध कर वैसे ही मुक्त होता है जैसे कि कोई विमुक्त वाराणसी में प्राण त्याग कर ।" 133
(9) अग्नि पुराण में कहा है : "जो वटमूल अथवा संगम में मरता है वह विष्णु-नगर को प्राप्त होता है । " 134
(10) प्रयाग में मरण करने का विधान केवल रोगियों के लिए ही नहीं है । स्वस्थ-अस्वस्थ सबको यह अधिकार है ।" 135
11. (क) अन्तकाल में जब मर्मस्थान छिन्न होने लगते हैं तब वायु से प्रेरित मनुष्यों की स्मृति काम नहीं करती । अविमुक्त-वाराणसी में मरते समय अन्तकाल में भक्तों के ईश्वर शिव स्वयं कर्म से प्रेरित भक्तों के कानों में जप-मन्त्र
130. कल्पवृक्षसमीपे तु ये त्यजन्ति कलेवरम् । ते तत्र मनुजा यान्ति मृता ये पुरुषोत्तमे । । ( 68/75)
131. देहं त्यजन्ति पुरुषास्तत्र ये पुरुषोत्तमे ।
कल्पवृक्षं समासाद्य मुक्तास्ते नात्र संशयः ।। वटसागरयोर्मध्ये ये त्यजन्ति कलेवरम् । ते दुर्लभं परं मोक्षं प्राप्नुवन्ति न संशयः । । (177/16-17) 132. तत्स्मात्सर्वप्रवत्नेन तस्मिन् क्षेत्रे द्विजोत्तम । देहत्यागो नरैः कार्यः सम्यक् मोक्षाभिकांक्षिभिः । ( 177/25) 133. श्रीशैले सन्त्यजेद् देहं ब्राह्मणो दग्धकिल्विषः । मुच्यते नात्र सन्देहो ह्यविमुक्ते यथा शुभम् ।। (92/168-169)
134. वटमूले संगमादौ मृतो विष्णुपुरी व्रजेत् । ( 111/13 ) 135. तस्मादातुरादेरनातुरादेश्च सर्वाधिकारः ।
खं. ३ नं. २-३
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