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________________ (ख) 'जो सर्वांगपूर्ण, निरोग और पंचेन्द्रिय से युक्त मनुष्य गंगा - युमना के संगम में करीषाग्नि की साधना करता है वह उसके शरीर में जितने रोमकूप होते हैं उतने ही सहस्र वर्षो तक स्वर्गलोक में पूजित होता है । 121 (ग) 'जो लोक - विश्रुत इस संगम स्थल में जल प्रवेश करता है वह राहु के ग्रास से विमुक्त चन्द्रमा की तरह सर्व पातक से विमुक्त हो सोमलोक को प्राप्त करता है एवं हजारों सैकड़ों वर्षों तक वहां चन्द्रमा के साथ आनन्द करता है । 122 (घ) 'जो अघ: शिर और उर्द्ध पाद हो वहां जलधारा को पीता है वह सात हजार वर्षों तक स्वर्गलोक में महिमा प्राप्त करता है । 328 (च) 'जो वटमूल का आश्रय ले प्राणों का परित्याग करता है वह स्वर्गलोक अथवा सब लोकों का अतिक्रम कर रुद्रलोक में जाता है । ' 124 (छ) “जो वहां अपने शरीर को काट कर शकुनियों को देता है वह सौ हजार वर्षों तक सोमलोक में पूजित होता है ।" 125 121. गंगायमुनयोर्मध्ये करीषाग्निञ्च साधयेत् । अहीनांगो ह्यरोगश्च पञ्चेन्द्रियसमन्वितः ॥ यावन्ति रोमकूपानि तस्य गात्रेषु भूमिप । तावद्वर्षसहस्राणि स्वर्गलोके महीयते ।। (1/37/3,4) यही बात मत्स्य पुराण ( 107 / 8 / 9,10 ) एवं पद्मपुराण (आदि काण्ड 4413 ) में कथित है । 122. जलप्रवेश यः कुर्य्यात्संगमे लोकविश्रुते । राहुस्तो यथा सोमो विमुक्तः सर्वपातकैः ।। सोमलोकमवाप्नोति सोमेन सह मोदते । षष्टिवर्षसहस्राणि षष्टिवर्षशतानि च ॥ (1/37/9) 123. अध: शिरास्तु यो धारामूर्द्ध पादः पिवेन्नरः । सप्तवर्षसहस्राणि स्वर्गलोके महीयते ॥ (1/83/7) 124. वटमूलं समाश्रित्य यस्तु प्राणान् परित्यजेत् । स्वर्गलोकानतिक्रम्य रूद्रलोकं स गच्छति ॥ (1/37/8) 125. यः शरीरं विकर्तित्वा शकुनिभ्यः प्रयच्छति । शतं वर्षसहस्राणां सोमलोके महीयते ॥ (1/37/11,12) खं. ३ अं. २-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only १ www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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