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________________ उपर्युक्त घटनाओं से स्पष्ट है कि पुराकाल में आत्मघात करने के तरीके प्रायः यही माने जाते थे। महाभारत में भी ऐसी अनेक घटनाएं हैं। उदाहरणस्वरूप : (1) युधिष्ठिर की लक्ष्मी को देखकर दुर्योधन ईर्ष्या से जलने लगा । वह शकुनि से बोलाः मैं आग में प्रवेश कर जाऊंगा, विष खा लूगा अथवा जल में डूब मरूगा, अब मैं जीवित नहीं रह सकता । 1छ (2) शकुनि आदि को बुलाकर दुर्योधन ने कहा: यहां मैं किसी प्रकार पाण्डवों को आया देख लूगा तो जल का भी परित्याग करके स्वेच्छा से अपने शरीर को सुखा लूगा । मैं जहर खा लूगा, फांसी लगा लूगा, अपने आपको शस्त्र से मार दूंगा अथवा जलती आग में प्रवेश कर जाऊंगा । मैं पाण्डवों को फिर बढ़ते या फलते-फूलते नहीं देख सकूगा 11ज (3) दमयन्ती ने नल से कहा : "आप ही मेरा पाणिग्रहण कीजिए और बताइये मैं आपकी क्या सेवा करूं। यदि आप मुझ दासी को स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं आपके कारण विष, अग्नि, जल अथवा फांसी को निमित्त बना कर अपना प्राण त्याग दूंगी।" (4) उत्तरा अपने पुत्र के शोक से विह्वल हो विलाप करती हुई बोली : महाबाहु ! धर्मराज की आज्ञा लेकर मैं विष भक्षण करूगी अथवा घोर अग्नि में प्रवेश करूंगी। अग्नि, जल आदि द्वारा जो प्राणों का विसर्जन करता है. उसे आत्महा, आत्महन्, आत्मत्यागी अथवा आत्मघाती कहा गया है ।12 11 छ. महाभारत 2-57-31 : वह्निमेव प्रवेक्ष्यामि भक्षयिष्यामि वा विषम् । अपो वापि प्रवेक्ष्यामि न हि शक्यामि जीवितुम् ।। 11 ज. महाभारत 3-7-5-6: अथ पश्याम्यहं पार्थान् प्राप्तानिह कथंचन । पुन: शोषं गमिष्यामि निरम्बुनिरवग्रहः ॥ विषमुद्बन्धनं चैव शस्त्रमग्निप्रवेशनम् । करिष्ये न हि तानृद्धान् पुनद्रष्टुमिहोत्सहे ॥ 11 झ. महाभारत 3-56-4 : यदि त्वं भजमानां मां प्रत्याख्यास्यसि...।. विषमग्निं जलं रज्जुमास्थास्ये तव कारणात् ।। 11 ट. महाभारत 14-69-9: 12-(क) काष्ठजललोष्टपाषाणशस्त्रविषरज्जुभिर्य आत्मानम् अवसादयति स आत्महा भवति । (वशिष्ठ 23/15) तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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