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________________ लक्ष्य है यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् । भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥ अर्थात् जब तक जिओ सुखपूर्वक जियो । यदि सुखपूर्वक जीने के साधन न हों तो ऋण ले कर घृत, दूध आदि खाओ, पीओ। अगले जन्म में ऋण चुकाने की चिन्ता करना भी व्यर्थ है । क्योंकि मृत्यु के उपरान्त शरीर के भस्मीभूत हो जाने पर जीव का पुनर्जन्म नहीं होता है । पुनर्जन्म के अभाव में अगले जन्म में ऋण चुकाने का प्रश्न ही नहीं है । चार्वाक पुण्य, पाप, आत्मा, मोक्ष, परलोक, स्वर्ग, नरक आदि कुछ भी नहीं मानते हैं । चार्वाक दर्शन में शरीर से पृथक कोई प्रात्मा नहीं मानी गई है । पृथिवी, जल, तेज और वायु इन चार भूतों के परस्पर में मिलने से एक विशेष शक्ति की उत्पत्ति होती है। इसी शक्ति का नाम प्रात्मा है। यह शक्ति शरीर की उत्पत्ति के साथ उत्पन्न होती है और शरीर के नाश के साथ ही नष्ट हो जाती है । अतः चार्वाकदर्शन में मृत्यु का नाम ही मोक्ष है। मरणमेवापवर्गः । अन्य दर्शनों में मोक्ष के साधन अधिकांश दर्शनों ने ज्ञान को मोक्ष का साधन माना है । उनका कहना है कि अज्ञान से बन्ध होता है और ज्ञान से मोक्ष होता है। सांख्यदर्शन में बतलाया गया है धर्मेण गमनमूर्ध्वगमनमधस्ताद् भवत्यधर्मेण । ज्ञानेन चापवर्गो विपर्ययादिष्यते बन्ध :॥-सांख्य का. 44 धर्म से ऊर्ध्वलोक में गमन होता है और अधर्म से अधोलोक में गमन होता है । ज्ञान से अपवर्ग (मोक्ष) होता है और अज्ञान से बन्ध होता है । भगवद्गीता में कहा है यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात् कुरुते क्षणात् । ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात् कुरुते तथा । - भगवद्गीता 4/37 अर्थात् जिस प्रकार प्रदीप्त अग्नि क्षणमात्र में इन्धन को भस्म कर देती है, उसी प्रकार ज्ञानरूपी अग्नि सब कर्मों को क्षणमात्र में भस्म कर देती है। बौद्धदर्शन में भी 'अविद्याप्रत्यया: संस्कारा:' इत्यादि प्रकार से द्वादशांग प्रतीत्य समुत्पाद के सिद्धान्त द्वारा यह बतलाया गया है कि अविद्या से बन्ध होता है और विद्या से मोक्ष होता है। सांख्यदर्शन में तो प्रकृति और पुरुष के भेदविज्ञान से मोक्ष माना ही गया है । न्याय-वैशेषिक दर्शन में भी तत्त्वज्ञान द्वारा मिथ्याज्ञान का अपाय तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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