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ने इस निश्चय-नय-परक व्याख्या की संगति बौद्ध क्षणभंगवाद से बिठाई, जैसा कि विशेषावश्यक-भाष्य 425 पर उनकी टीका में उद्धृत 'भूतियेषां क्रिया सैव' इस पद्यांश से होती है । सम्पूर्ण पद्य इस प्रकार है :
क्षणिका: सर्वसंस्कारा अस्थिराणां कुतः क्रिया। भूतिर्येषां क्रिया सैव कारकं सैव चोच्यते ॥
देखो मध्यमकवृति, पृ 116, टि० 1. उत्तरवर्ती जैन दार्शनिक अकलंकदेव तथा उनके अनुयायी आचार्य वीरसेन ने ऋजुसूत्र-नय-परक व्याख्या द्वारा 'क्रियमाणं कृतम्' सिद्धान्त के कार्यक्षेत्र में और भी परिवर्तन किया। नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि तथा मलधारी हेमचन्द्र ने भी इस सिद्धान्त को अपने ढंग से स्पष्ट किया। एकान्तवादियों के कार्य-कारण वाद संबंधी मन्तव्यों की समीक्षा उपर्युक्त क्रियमाणं कृतम्' सिद्धान्त के आधार पर करना आवश्यक है। इस सिद्धान्त की परिधि किसी नयविशेष तक सीमित नहीं रखकर यदि आगमों के ही आधार पर इसे समझने के प्रयत्न किये जायं तो शायद कार्य-कारण वाद पर नया प्रकाश डाला जा सकेगा।
खं. ३ अं. २-३
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