________________
जब उपरोक्त सारणी में दिये गये मन्दकर्ण के भावों को ध्यान से देखते हैं तो ज्ञात होता है कि यहां जो सूर्य सिद्धान्तीय मान लिखे हैं वे बुध-शुक्र के मन्दकर्ण उनकी कक्षा की परिधि का अर्थात् 360 का उनकी नीचोच्चवत परिधि में भाग देकर और बहिर्वर्ती ग्रहों के मन्दकर्ण नीचोच्चवृत परिधि का 360 अंश में भाग देकर लाये गये हैं । इन सब की आपस में तुलना करते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि इनमें एक रूपता नहीं है । अतः ये मान सब सिद्धान्तों में अपनी-अपनी मौलिकता के आधार पर दिये गये हैं न कि एक दूसरे की नकल करके । इससे यह सिद्ध होता है कि भारतीय सिद्धान्तों में टालमी के सिद्धान्तों की नकल नहीं की गई है।
(5) इसी तरह जब हम ग्रह विक्षेप के बारे में अध्ययन करते हैं तो ग्रहों के मध्यम विक्षेपमान अर्थात क्रान्तिवृत से उनकी कक्षाओं के दूरत्व 'कुछ सिद्धान्तों में मध्यमाधिकार में ही दिये गये हैं। इनकी तुलना सारणी सं० 5 से की जा रही है।
सारणी सं० 5 के मानों से ज्ञात होता है कि टालमी के मानों व वर्तमान सूर्य सिद्धान्त के मानों व आधुनिक सिद्धान्त के मानों में भिन्नता है। यदि भारतीयों ने टालमी से ये मान लिये होते तो उनमें इतनी भिन्नता, विशेषकर बुध व शुक्र के मानों में, नहीं होती। इससे यही सिद्ध होता है कि ये मान भारतीयों ने स्वयं अपने अनुभव व खोज से निश्चित किये हैं।
(6) इसके अलावा जब हम परममन्दफल मानों की तुलना करते हैं तो विभिन्न सिद्धान्तों से निम्न परममन्दफल मान ज्ञात होते हैं:-(38)
"परममन्दफल मान सारणी'
(सारणी नं. 6)
प्रथम आर्य सिद्धान्त
टालमी सिद्धान्त
आधुनिक सिद्धान्त
विशेष विवरण
अंश | कला विकला| अंश कला | अं. | क. | वि.
सूर्य 28 चन्द्र मंगल बुध
ananown
anunun
गुरु
शुक्र | 2 | 51 शनि
37. झारखण्डी, शिवनाथ, भारतीय ज्योतिष, 1975, पेज 428 38. झारखण्डी, शिवनाथ, भारतीय ज्योतिष, 1975, पृ० 478
खं. ३ अं. २-३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org