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अंगिरस् कहते हैं-सर्व स्त्रियों के लिए पति के मरने पर उसके साथ अग्निप्रपतन के सिवा अन्य कोई धर्म नहीं है।''141
अंगिरस ने विधवाओं के लिए दो मार्ग न बता एक ही मार्ग बताया है। ब्रह्मचर्य को प्रधानता देना दूर, उसको अवकाश ही नहीं दिया है।
(2) पैठनिसि में कहा है-."ब्राह्मण स्त्री के लिए मृतपति के अनुगमन का विधान नहीं है, पर अन्य वर्ण की स्त्रियों के लिए यह परम धर्म है।"143
__ अंगिरस का भी ऐसा ही अभिमत है-"जो ब्राह्मण स्त्री अपने मतपति का अनुगमन करती है वह आत्मघात करने से न स्वयं स्वर्ग में जाती है और न पति को वहां ले जाती है ।"143
व्याघ्रपात् ने भी ब्राह्मण स्त्री के लिए सहमरण का निषेध किया है ।''144
अंगिरस् ने अन्यत्र कहा है- ब्राह्मण स्त्री पति की चिता पर उसके शव के साथ मरण कर सकती है, बाद में पृथक् चिता पर नहीं। अन्वारोहण ब्राह्मण स्त्री का भी धर्म है । अनुगमन नहीं।''145
इससे विद्वानों ने फलित किया है कि पैठनिसि, अंगिरस् और व्याघ्रपात् के विधान अनुगमन के विषय में हैं, सहमरण के विषय में नहीं।
मिताक्षरा टीका में कहा है-"गर्भावस्था आदि विशेष परिस्थितियों के अतिरिक्त पति का अनुगमन ब्राह्मण से लेकर चाण्डाल तक सब वर्ग की स्त्रियों का साधारण कर्म है।"146
वेदव्यास स्मृति ।111531 में स्पष्ट कहा है-"ब्राह्मणो मृत-पति को साथ ले अग्नि में प्रवेश करे। यदि ऐसा न करे तो केश-भूषा न करे और शरीर को सुखा डाले ।"147
141. सर्वासामेव नारीणामग्निप्रपतनादृते ।
नान्योधर्मो हि विज्ञ यो मृते भर्तरि कहिचित् ।। 142. मृतागमनं नास्ति ब्राह्मण्या ब्रह्मशासनात् ।
इतरेषां तु वर्णानां स्त्रीधर्मोयं परः स्मृतः ।। 143. या स्त्री ब्राह्मण जातीया मृतं पतिमनुव्रजेत् ।
सा स्वर्गमात्मघातेन नात्मानं न पतिं नयेत् ।। 144. न म्रियेत समं भर्ता ब्राह्मणी शोकमोहिता ।
प्रव्रज्यगतिमाप्नोति मरणादात्मघातिनी ।। 145. पृथचितिं समारुह्य न विप्रा गन्तुमर्हति ।
अन्यासां चैव नारीणां स्त्रीधर्मोयं परः स्मृतः॥ 146. अयं च सर्वासां स्त्रीणामभिणीनामबालापत्यानामाचाण्डालं साधारणो धर्मः।
(याज्ञ० 1/86 की मिताक्षरा टीका) 147. मृतं भर्तारमादाय ब्राह्मणी वह्निमाविशेत् ।
जीवन्ति चेत्त्यक्तकेशा तपसा शोषयेद्वपुः ।।
तुलसी प्रज्ञा
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