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________________ पड़ते हैं । उससे जलगत जन्तुओं का नाश होता है । भूमि पर पानी गिराने से पिपीलिका आदि सूक्ष्म जीवों की हिंसा होती रात्रि भोजन में जो दोष ऊपर बताये गये हैं इनका होना अनिवार्य नहीं है। पहली बात, आज के विज्ञान ने प्रकाश के ऐसे साधनों का आविष्कार किया है जिन से दिन में दिखने वाली वस्तुएं रात को न दिखें, ऐसी बात नहीं है । असावधानीपूर्वक की गई क्रिया से तो क्या दिन और क्या रात, कभी भी हिंसा हो सकती है । __ दूसरे में पात्र धोने पड़ें, ऐसी चीजें मानली न खाई जायें किन्त सूखी चीजें तो खाई जा सकती हैं । यदि रात्रि भोजन का कारण पात्र धोने और पानी के गिराने से होने वाली हिंसा ही हो। एक बात और है, जो सर्वज्ञ हैं उनके अन्धेरे और प्रकाश में क्या अन्तर पड़ता है ? जबकि वे अपने ज्ञान से दिन के समान रात को भी देख सकते हैं । यदि कहा जाय कि रात को दिखने पर भी व्यवहार का लोप नहीं किया जा सकता तो तीर्थंकर कौन से सारे व्यवहार निभाते दिखने के कारण वह किसी खम्भे से टकराकर गिर पड़ी और उसका गर्भ स्खलित हो गया। इससे उस साधु का बड़ा अपवाद हुआ । (२) दूसरी घटना है एक औरत ने अपनी सोत के लड़के को मारकर दरवाजे के पीछे छोड़ दिया। रात का समय था। एक साधु भिक्षा के लिए आया। किवाड़ हिलाए । मृत बालक द्वार के बीच गिर पड़ा और उसके मारने का लांछन उस मुनि पर लगाया गया। इन उपर्युक्त घटनाओं से रात्रि भोजन परिहार की कोई पुष्टि नहीं होती। हां ! रात्रि गमन वजित हो सकता है । किन्तु दिन में लाए हुए भोजन को रात में करने से ये घटनाएं बाधक नहीं बनती हैं। दूसरे में असावधानी दिन में और रात में कभी भी हो सकती है। दिन में भी भिक्षार्थ जाते मुनि का किसी घटना विशेष से अपवाद होना संभव है। रात्रि भोजन करने से संग्रह का दोष लगता है । अगर ऐसा मान लिया जाय तो दिन में भी तो सुबह का लाया गया आहार शाम को या दुपहर को काम में लिया जाता है, वहां संग्रह कैसे नहीं होगा ? अगर वह संग्रह नहीं है तो फिर शाम को लाया गया रात को काम में लिया जाता है उसमें संग्रह कैसा? तीर्थंकर आदि जिनके मोह कर्म नष्ट हो गया, ज्ञान का पूरा प्रकाश है उनके लिए आसक्ति, संग्रह, हिंसा आदि का प्रश्न ही नहीं। फिर वे रात्रि-भोजन क्यों नहीं करते ? श्रावक जिनके न तो परिग्रह संग्रह का रात्रि भोजन से कोई सम्बन्ध है और न हिंसा, अहिंसा का विशेष अंतर है और रात्रि में इर्या समिति का शोधन नहीं होता अत: रात्रि भोजन वजित है तो फिर रात्रि भोजन विरमण ही न होकर रात्रिविरहण भी होना चाहिए था। रात्रि भोजन की सदोषता को सिद्ध करने के लिए प्राचीन ग्रन्थों में कुछ घटनाओं का संकेत मिलता है। (१) कालोदाई नाम का भिक्षु एक ब्राह्मण के यहां रात को भिक्षार्थ गया। ब्राह्मण की पत्नी गर्भवती थी अंधेरे में न ४२ तुलसी प्रज्ञा-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524503
Book TitleTulsi Prajna 1975 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Gelada
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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