________________
रात्रि भोजन, एक मीमांसा
साध्वी मंजुला
जैन मुनि के लिए रात्रि भोजन निषिद्ध है । शास्त्रों में पांच महाव्रतों की भांति ही रात्रि भोजन विरमण रूप छ8 व्रत का पालन मुनि के लिए आवश्यक है।
यह प्रसंग एक गहरी मीमांसा मांगता है, क्योंकि रात्रि भोजन और आत्म साधना का परस्पर क्या सम्बन्ध है ? रात्रि भोजन को दोष क्यों माना गया है ? क्या हिंसा, झूठ, चोरी आदि दोषों । की तरह रात्रि भोजन से भी आत्मा मलिन होती है ? क्या रात्रि भोजन के साथ हिमा और संग्रह की निश्चित व्याप्ति है ? मुनि के लिए हिंसा और संग्रह की दृष्टि से रात्रि भोजन त्याज्य है तो फिर श्रावक के लिए रात्रि भोजन प्रत्याख्यान का क्या अर्थ है ? जबकि उसके रात्रि भोजन और दिवा भोजन से हिंसा, संग्रह आदि में कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता । मात्र व्यावहा
रिक दोषों से बचने के लिए गृहस्थ को रात्रि भोजन प्रत्याख्यान कराया जाता है तो फिर साधु के लिए अनिवार्यता क्यों ?
सूर्यास्त और सूर्योदय को भी सर्वत्र एकरूपता नहीं है । कुछ देशों में सूर्यास्त होता ही नहीं है। कुछ देशों में छः महीने रात और छः महीने दिन होते हैं। वहां रात्रि भोजन की क्या व्याख्या होगी।
कुछ शाश्वत तत्त्वों को छोड़कर हर वस्तु की उपादेयता और अनुपादेयता, श्रेष्ठता और निकृष्टता समय-सापेक्ष होती
रात्रि भोजन वर्तमान युग में फैशन, सभ्यता और कुलीनता का प्रतीक बन गया है। जबकि पुराने जमाने में यह म्लेच्छ, अनार्य और असभ्यों का आचार माना जाता था।
तुलसी प्रज्ञा-३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org