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पीछे होने पर निर्भर हुआ ना
तब अहंकार कैसा?
इन कविताओं के आध्यात्मिक संस्पर्श में सामाजिक संवेदना की सान्द्रता है। व्यक्ति से समष्टि तक विस्तार की ज्यामिती को लिखते हुए, कवि कहता है
मैं तुम्हारा हूँ
उस तरह
जिस तरह, कोई
परमात्मा का होता है।
कवि जानता है कि संवेदना ही हमें पूर्ण बनाती है । कवि की विरक्ति में सभी के प्रति अनुरक्ति है
मैंने तो सभी को
अपने में पाया है अपने में
सभी को पाने के लिये। इन कविताओं में प्रज्ञा के, साधना के सूत्र बिखरे पड़े हैं। कवि कहता है परमात्मा को खोजने कहीं बाहर नहीं जाना है। यह यात्रा तो अपने घर वापस लौटने जैसी है
ईश्वर को पाना
यानी
अपने में ही लीन होना
अपने को पा लेना है।
जैसे नदी वापस अपने उद्गम को लौटे या वृक्ष अपने बीज में समाहित हो जाये। यह अपने में ही परिपूर्ण होना है और यही प्रत्याहार है।
संग्रह में ' नई शिक्षा' एक अलग मिजाज की कविता
28 सितम्बर 2009 जिनभाषित
है। जड़ों से कटी हुई, आयातित जीवन-मूल्यों पर आधारित शिक्षा-व्यवस्था पर यह एक सात्विक व्यंग्य और सामयिक चेतावनी है। जो लोग शिक्षा में नित नये प्रयोग कर रहे हैं, उन तक कनि का यह संदेश अवश्य पहुँचना चाहिये कि
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अपनी प्रकृति खो कर
कोई कहीं का नहीं रहता ।
यहाँ कवि का आग्रह एक ऐसी शिक्षा नीति के लिये है जो नैसर्गिक प्रतिभा और कुशलता को विकसित कर सके।
मुनि श्री क्षमासागर की इन सरल तरल और सहज कविताओं में गम्भीर वैचारिकता का प्रवाह है, सत्य का उन्मेष है, जीवन की प्रफुल्लता का संदेश है और वह सब कुछ है, जो आज के इस अध्यात्म विपन्न और संस्कृतिदरिद्र समाज को चाहिये । कुंवरनारायण की काव्य-पंक्तियों को उद्धत करते हुए कहना चाहूँगा
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एक शून्य है
मेरे और अज्ञात के बीच
जो ईश्वर से भर जाता है।
एक शून्य है
मेरे हृदय के बीच
जो मुझे मुझ तक पहुँचाता है।
इन कविताओं को पढ़ते हुए कुछ ऐसा ही अनुभव होता है।
डॉ० सागरमलजी जैन सम्मानित
सुप्रसिद्ध जैन मनीषी तथा प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर के संस्थापक डॉ० सागरमलजी जैन को, जैन विश्वभारती लाडनूं द्वारा प्रतिष्ठित 'आचार्य तुलसी प्राकृत पुरस्कार' (१ लाख रूपये) से सम्मानित किया गया। डॉ० जैन सा० को यह पुरस्कार प्राकृत भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदान किया गया। उन्होंने यह राशि व्यक्तिगत रूप से स्वीकार न करके प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर को ही समर्पित कर दी। डॉ० जैन सा० की इस उपलब्धि पर उन्हें शाजापुर नगर एवं देश-विदेश के अनेकों गणमान्य व्यक्तियों ने बधाई दी है। इसके पूर्व भी उन्हीं प्राकृत भाषा और जैन साहित्य एवं जैनदर्शन में उत्कृष्ट कार्यों हेतु एक लाख ग्यारह हजार रूपये प्राकृत भारती का गौतम गणधर पुरस्कार एवं जैना अमेरिका का प्रेसीडेन्सियल अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है।
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११०२, साँई अंश
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