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________________ है। मूर्ति के दाएँ बाएँ ७ फीट उत्तुंग क्रमशः (संवभतः) । है, जिसका १ फीट ८ इंच का दिव्य कलात्मक आसन महावीर व अरहनाथ की मूर्तियाँ हैं । सन् १९७८ में खण्डित | है, उसके नीचे १ वर्ग फुट का प्रशस्ति-शिलालेख है। प्रतिमाओं के स्थान पर नवीन 'कुन्थुनाथ, अरहनाथ की शिलालेख से स्पष्ट है कि इसकी प्रतिष्ठा फागुन सुदि प्रतिमाएँ स्थापित की गईं। गर्भालय-फर्श अत्यन्त छिन्न- | १० संवत् १२०४ को हुई थी। इसके दायें-बायें ७-७ भिन्न हो गया है। इसमें विशालकाय दो मूर्तियों के धड़ | फीट की वर्द्धमान स्वामी की प्रतिमाएँ हैं। इनके चरणों पड़े थे। और इनके शिर मंदिर के बाहर पड़े हुए हैं। | के समीप २८-२८ फीट के ६ इन्द्र खड़े हैं। जो चमर एक २४ वर्गफुट का चौमुखी मेरु गर्भालय में रखा है | ढोरते दिखते हैं। मूर्तियों के हाथ खण्डित है। मूर्तियों मंदिर के उत्तर की ओर बाहर एक पत्थर पड़ा है, जिस | के ऊपर दीवाल में २८ वर्ग फीट की दो पद्मासन मूर्तियाँ पर १-१ फीट की १५ मूर्तियाँ बनी हैं। इस मंदिर से | लाल पत्थर में चस्पा हैं। कोई ३०० मीटर की दूरी पर एक खण्डित मढ़ मालिन चम्पो-मढ़ के दक्षिण की ओर एक अर्द्ध-भग्नावशेष बाबा का मंदिर नाम से है व आगे पर्वत पर चम्पोमढ़ दूसरा मढ़ है, जिसमें शान्ति, कुन्थु, अरह की मनोज्ञ देशी पत्थर की प्रतिमाएँ खड़ी हैं। तीनों पर प्रशस्तियाँ ३.खण्डित मढ़- यह मढ़ आज भी अपनी खण्डित | हैं। मध्य की मूर्ति ८ फीट ऊँची शेष दो ५८ फीट अवस्था में टीले के रूप में पड़ा हुआ है। इसके अन्दर | ऊँची हैं। दोनों के हाथ टूटे हैं। मढ़ का छत धराशायी स्थित ७ फीट उत्तुंग खड़ी मूर्ति आज भी उस टीले हो जाने से बाहर से मूर्तियाँ, अर्ध देह के साथ दिखाई में घुटनों तक दबी हुई खड़ी है। . देती हैं। इसके चारों तरफ ८फीट ऊँची मात्र दीवालें ४. चम्पो मढ़- खण्डित मढ़ से उत्तर की ओर | खड़ी हैं। मढ़ का गर्भालय ६ फुट चौड़ा व ६% फुट कोई दो फाग आगे चम्पो-मढ़ मिलता है। यह मढ़ | लम्बा है। प्रवेश द्वार यथावत् खड़ा है, जो आकार-प्रकार पुरातन कला युक्त मंदिर है, जो ११वीं शताब्दी की वास्तु- में ४/४३% है। ये दोनों मढ़ पर्वत श्रेणी के तल से कला का नमूना है। इस मढ़ के समीप जाने के लिए ४ फुट ऊँचे टीले पर निर्मित हैं। इस मढ़ के चारों बीहड़ जंगल की झाड़-झाड़ियों के बीच में होकर जाना | तरफ भयावह बीहड़ जंगल खड़ा है। पड़ता है। इस मढ़ के चारों ओर पत्थर व कटावदार | पुरपट्टन नगर तोरणद्वार एवं मूर्तियों के अवशेष पड़े हैं। इस मढ़ की | चम्पो-मढ़ के उत्तर-पूर्व की ओर अत्यंत घने जंगल कुर्सी जमीन तल से ४ फीट ऊँची है। मढ़ के आगे | के बीच लगभग २ फलाँग आगे अनेक भवनों के खण्डहर चार विशाल पायों पर खुली पत्थर की ऊँची दालान | मौजूद हैं, जिन्हें 'पुर-पट्टन' नाम से कहा जाता है। है। और इसके अलावा नाना तरह के देवी-देवताओं, | कथा इस प्रकार है- राजा मदनसेन इस नगर के ख्यातिपशु-पक्षियों, देवविमानों और मूर्तियों तथा तत्कालीन शैली | प्राप्त राजा थे। जिनकी आमोती-दामोती नाम की अत्यंत के कलात्मक कटाओं से युक्त एक विशाल भव्याकर्षक | रूपवती रानियाँ थी। कहा जाता है कि पाटन नगर में पत्थर का तोरणद्वार बना है। द्वार के ऊपरी हिस्से पर | ३६५ कोरी (जुलाहे) रहते थे, जो अत्यंत कुशल वस्त्र यक्ष-यक्षिणी व उनके साथ अनेक देवी-देवताओं की | निर्माता थे। वर्ष में एक कोरी दो साड़ियाँ तैयार करता मूर्तियाँ टंकित हैं। नीचे ३ पद्मासन जिन भगवान् की | था। और दोनों रानियाँ प्रतिदिन एक-एक साड़ी पहनती, मूर्तियाँ है। उनके तोरणद्वार के दोनों तरफ आस-पास | फिर गरीबों को दूसरे दिन दान कर देती थीं। इन कोरी में रास नृत्य करती हुईं देवी-देवियाँ व नीचे दोनों ओर | परिवारों की आजीविका का निर्वाह राज्य की ओर से ३-३ इन्द्र बने हैं। देहरी पर ४ दश्य ऐसे हैं, जिनमें | होता था। हाथी-सिंह के युद्ध का रूप दर्शाया गया है। इसका मुख | अक्षय प्रतिष्ठा और महानतम प्रतिभा के कारण पूर्व की ओर है। तोरणद्वार से अंदर की ओर ४% फीट | बुन्देलखण्ड में राजा मदनसेन और रानी आमोती-दामोती नीचे गर्भालय की जमीन है, जिसमें ४ जीना लगे हुए | की इतनी लोकप्रियता बढ़ी कि इनके नाम की बुन्देलखण्ड हैं, अष्ट प्रातिहार्य युक्त ३ मूर्तियाँ खड़ी हैं। बीच में | के घर-घर में आदर के साथ पूजा होने लगी। ७ फीट ७ इंच की भगवान् शान्तिनाथ की मूर्ति खड़ी । प्रतिवर्ष क्वार बदी अष्टमी के दिन महालक्ष्मी 22 सितम्बर 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524343
Book TitleJinabhashita 2009 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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