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अतिशय क्षेत्र मदनपुर का वास्तु वैभव
प्रतिष्ठाचार्य पं० विमलकुमार जैन सोरया
विन्ध्याचल सरणि में २५-७६ अक्षांश और देशान्तर । प्रस्तुत कर रहे हैं। रेखाओं के मध्य उत्तरप्रदेश के झाँसी जिले में दक्षिण परिचय- जब इस ग्राम की सीमा में प्रवेश करते पूर्व के कोने में पू० क्षु० चिदानन्द जी के चातुर्मास का हैं, तो एक विशाल नाला है, जो पश्चिम से पूर्व की स्थान मंदिरों की नगरी मड़ावरा है, जहाँ एक छोटे से | ओर बहता है। इसी के पास से पूर्व की ओर एक नगर में ११ विशाल गगनचुम्बी जिनालय एवं ९ देवालय | शासकीय विश्रामगृह है, आगे चलने पर दायें हाथ की
अपनी गौरव गरिमा को लिये खड़े हैं, तथा धर्म की ओर आरक्षी केन्द्र का कार्यालय है। आगे दक्षिण पूर्व निर्मल छाया में संसारभ्रमित संतप्त प्राणियों को अक्षय की ओर एक प्राचीन तालाब का बाँध सामने दिखता सुख की प्राप्ति के हेतु संकेत रूप में बुलाते हुए प्रतीत | है। और उसी से लगे हुए शान्त उत्तुंग पर्वतों के अंचल होते हैं। इन मंदिरों के सातिशय दर्शन करने के बाद | में दो विशाल भवन दिखते हैं, जो आल्हा-ऊदल की ऐसी जिज्ञासा का जन्म होता है, कि क्या इनके समीप | बैठक के नाम से ख्यात हैं। कोई पुरातन सांस्कृतिक भग्नावशेष नहीं होंगे? ।
ये दोनों भवन पुरातत्त्व विभाग के अधिकार में इस जिज्ञासा की परितृप्ति के लिए समीपवर्ती | हैं। मदनपुर ग्राम के पूर्व दक्षिण में स्थित एक ऊँचे कतिपय खण्डहरों की झलक पर्याप्त होगी। स्थान पर जमीन तल से १० फीट पत्थरों की कुर्सी
यहाँ की अतिशयता के विषय में अनेक ऐतिहासिक | पर, इनका निर्माण किया गया है। पहले १० खम्बों से महत्त्वपूर्ण कथानक दन्तकथाओं के रूप में प्रचलित हैं, | युक्त एक चौकोर खुली बैठक है, जिसमें दक्षिण उत्तर जो यहाँ की अपरिमेय अतिशयता को आलोकित किए | की ओर लगे पत्थरों पर शिलालेख अंकित हैं, जो अस्पष्टता हैं। परिणामतः यहाँ प्रतिवर्ष माघ माह में जैनों का वार्षिक के कारण आसानी से नहीं पढे जा सकते। इसके दक्षिण मेला प्राचीन ऋषभदेव के विशाल मन्दिर के समीप लगता | में लगभग १० फीट की दूरी पर इसी प्रकार का दूसरा है। आज भी श्रद्धालुजन अतिशय क्षेत्र के रूप में इसकी भवन बना है, जिसमें ३ खण्ड हैं। मध्य में पूर्व-पश्चिम वंदना कर अपने को धन्य कर रहे हैं।
की ओर से खुला एक कमरा है, जो दक्षिण व उत्तर मदनपुर- मड़ावरा ग्राम से दक्षिण की ओर १९ | की ओर बने हुए गृहों से संबंधित है। १७ फीट चौड़े कि.मी. दूरी पर मदनपुर नाम का ऐतिहासिक ग्राम है। | और १३% फीट लम्बाई से इन गृहों का निर्माण है। यह ९वीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक की वास्तुकला | प्रत्येक गृह के ऊपर छत के रूप में एक ही पत्थर का जीता-जागता निदर्शन है। इस क्षेत्र में जहाँ एक ओर का उपयोग किया गया है जो कि १३/ फीट लम्बा पाषाणकला के अवशेष बिखरे हैं, वहीं दूसरी ओर इस | ८% फीट चौड़ा और १० इंच मोटा है। इस पत्थर पर क्षेत्र की भूमि में अनेक धातुओं के भण्डार भी हैं, जिनके | सुन्दर आकार की पच्चीकारी से युक्त बेल, फूल व खनन से आज यह अंचल विकसित हो सकेगा। | देवी-देवता के रूप बने हुए हैं।
इस स्थान से ५ मील दूर उत्तर में सोंरई नामक | अगल-बगल की बैठकों में तीन तरफ १० फीट प्राचीन ऐतिहासिक ग्राम है। यहाँ प्राचीन गढ़ी, उन्नत इंच ऊँचे, २ फीट ८ इंच चौड़े और १० फीट लम्बे मन्दिर आदि हैं। गत १० वर्षों के लम्बे अनुसन्धान के | बेंचनुमा पत्थर पड़े हैं। इन पत्थरों में खाँचा देकर १ बाद इस परिणाम पर पहुँचे हैं, कि इस परिक्षेत्र में विपुल | फीट १० इंच ऊँची, ३ इंच मोटी और लगभग ५ फीट मात्रा में ताँबे व स्वर्ण धातु के भण्डार हैं। लम्बे पत्थरों की पीठिका (तकिया) बाहर की दीवालों
सरई ग्राम से ४ मील उत्तर की ओर यहाँ कला | के समानान्तर लगी है। का पुरातन तीर्थ मदनपुर है, जहाँ की ऐतिहासिकता | मध्य के गृह की चारों दिशाओं में तीन-तीन खम्भे कलात्मकता व प्राचीनता का यथार्थ चित्रण आपके सामने । खडे हैं। पर्व दिशा से इन बैठकों में आने के लिए
20 सितम्बर 2009 जिनभाषित
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