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ऽनृतवचन-परद्रव्यादान-महारम्भ-परिग्रह-उज्ज्वलवेषरूप- | परिणामों के समुच्चय के लिए दिया है यथा- मिथ्यादर्शन, मद-परुषासभ्यप्रलाप-आक्रोश-मौखर्य-सौभाग्योपयोग- | चुगली, अस्थिरचित्तता, झूठे माप तौल रखना, पर की निन्दा वशी-करणप्रयोगपरकुतूहलोत्पादनाऽलंकारादर-चैत्य- | और अपनी प्रशंसा करना इत्यादि सर्व ही अशुभ नाम कर्म प्रदेशगन्ध-माल्यधूपादिमोषणविलम्बनोपहासइष्टि- के आस्रव जानने चाहिये। कापाकदवाग्नि-प्रयोगप्रतिमायतनप्रतिश्रयारामोद्यानवि- तत्त्वार्थवृत्ति- चकारात् मिथ्यादर्शनं, पिशुनतायां नाशन-तीव्रक्रोधमानमायालोभपापकर्मोपजीवनादिलक्षणः। स्थिरचित्तत्वं, कूटमानतुलाकरणं, कूटसाक्षित्वभरणम्,
अर्थ- 'च' शब्द अनुक्त के समुच्चय के लिए है। | परनिन्दनम्, आत्मप्रशंसनम्, परद्रव्यग्रहणम्, असत्यभाषणम्, ४। अनुक्त अशुभनामकर्म के आस्रव का संग्रह करने के महारम्भमहापरिग्रहत्वम्, सदोज्ज्वलवेषत्वम् सूरूपतामदः, लिए 'च' शब्द का प्रयोग किया गया है। शंका- अनुक्त | परुषभाषणम, असदस्यप्रलपनम, आक्रोशविधानम, अशुभनाम कर्म के आस्रव के कारण कौन-कौन हैं? | उपयोगेन सौभाग्योत्पादनम्, चूर्णादिप्रयोगेण परवशीकरणम समाधान- मिथ्यादर्शन, पिशुनता, अस्थिरचित्तस्वभावता, मंत्रादिप्रयोगेण परकुतूहलोत्पादनम्, देवगुर्वादिपूजामिषेकटमानतलाकरण (तराज बाँट हीनाधिक रखना), कृत्रिम | णगन्ध-धूपपुष्पाद्यानयनम्, परविडम्बनम्, उपहास्यकरणम् सुवर्ण, मणि, रत्न आदि बनाना, झूठी साक्षी देना, अंगोपांग इष्टोच्चय-पाचनम्, दावानलप्रदानम्, प्रतिमाभंजनम्, का छेदन करना, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श का विपरीतपना | चैत्यायतन-विध्वंसनम्, आरामखण्डनादिकम्, तीव्रक्रोधअर्थात् स्वरूप विकृत कर देना, यन्त्र, पिंजरा आदि पीड़ाकारक
मानमाया-लोभत्वम्, पापकर्मोपजीवित्वं चेत्यादयोपदार्थ बनाना, एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य का विषय सम्बन्ध | ऽशुभनामास्त्रवा भवन्ति। करना, माया की बहुलता, परनिन्दा, आत्मप्रशंसा,
अर्थ- सूत्र में आये 'च' शब्द से मिथ्यादर्शन, मिथ्याभाषण, परद्रव्यहरण, महारम्भ, महापरिग्रह, उज्जवलवेष, पिशुनता (चुगली करना), अस्थिरचित्तता, झूठे बाँट तराजू और रूप का घमंड करना, कठोर और असभ्य भाषण
रखना, झूठी साक्षी (गवाही) देना, परनिन्दा, आत्मप्रशंसा, करना, क्रोधभाव रखने और अधिक बकवाद करने में परद्रव्यग्रहण, असत्यभाषण, बहुत आरम्भ, बहुत परिग्रह, अपने सौभाग्य का उपयोग करना, दूसरों को वश में करने | सदा उज्ज्वल वेष, रूपमद, परुषभाषण (असभ्यभाषण), के प्रयोग करना, दूसरे में कुतूहल उत्पन्न करना, बढ़िया- | असद् का प्रलपन (झूठी बकवास), आक्रोश, उपयोग बढ़िया आभूषण पहनने की चाह रखना, जिनमन्दिर- | पूर्वक सौभाग्योत्पादन, चूर्ण आदि के प्रयोग से दूसरों को चैत्यालय से गन्ध, माल्य धूप आदि को चुरा लेना, किसी | वश में करना, मंत्र आदि के प्रयोग से दूसरों को कुतूहल की विडम्बना करना, उपहास करना, ईंट का भट्टा लगाना, |
| उत्पन्न करना, देव गुरु आदि की पूजा के बहाने से गन्ध, वन में अग्नि लगाना. प्रतिमा का. प्रतिमा के आयतन का | धूप, पुष्प आदि लाना, दूसरों की विडम्बना (परेशान) अर्थात चैत्यालय का और जिनकी छाया में विश्राम लिया | करना, उपहास करना, ईंट पकाना, दावानल (जंगल की जाये ऐसे बाग-बगीचों का विनाश करना, तीव्र क्रोध, मान,
अग्नि) प्रज्वलित करना, प्रतिमा तोड़ना, जिनालय विध्वंस माया, और लोभ करना तथा पापकर्म जिसमें हो ऐसी
करना, बाग उजाड़ना तीव्र क्रोध, मान, माया और लोभ, आजीविका करना इत्यादि बातों से भी अशभनामकर्म का | पाप कर्मों से आजीविका करना आदि अशुभ नाम कर्म आस्रव होता है।
के आस्रव हैं। श्लोकवार्तिक- 'च' शब्दोऽनुक्तसमुच्चयार्थः तेन
भावार्थ- मिथ्यादर्शन, चुगलखोरी, अस्थिर-चित्त तज्जातीयाशेषपरिणामपरिग्रहः।।
रहना, परनिन्दा, आत्मप्रशंसा, अंगोपांग का छेद करना, अर्थ- सूत्र में आया 'च' शब्द अनुक्त के समुच्चय
आदि योगों की कुटिलता और विसंवादवाले सभी प्रकार के लिये है, जिससे योगवक्रता और विसंवादन की जाति- के परिणामों का ग्रहण करने लिए सूत्र में चकार पद दिया वाले सम्पूर्ण परिणामों का ग्रहण हो जाता है। गया है अर्थात् ये सब भी अशुभ नाम के आस्रव के कारण
सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- 'च'शब्दोऽनुक्तस्यैवंविधस्य | परिणामस्य समुच्चयार्थः। स च मिथ्यादर्शनपिशुन- परात्मनिंदाप्रशंसे सदसद्-गुणोच्छादनोद्भावने च ताऽस्थिरचित्तताकुटमानतलाकरणपरनिन्दात्मप्रशंसादिः। [नीचैगोत्रस्य॥ २५॥
अर्थ- सूत्र में 'च' शब्द इसी तरह के अनुक्त | सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक व श्लोकवार्तिक में 'च' 18 सितम्बर 2009 जिनभाषित
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