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________________ RPPT! - आचार्य श्री विद्यासागर जी अरे कंकरो! माटी से मिलन तो हुआ माटी में मिले नहीं तुम! माटी से छुवन तो हुआ पर माटी में घुले नहीं तुम! इतना ही नहीं, चलती चक्की में डालकर तुम्हें पीसने पर भी अपने गुण-धर्म भूलते नहीं तुम! भले ही चूरण बनते, रेतिल, माटी नहीं बनते तुम! जल के सिंचन से भीगते भी हो परन्तु, भूलकर भी फूलते नहीं तुम! माटी सम तुम में आती नमी नहीं क्या यह तुम्हारी है कमी नहीं? तुम में कहाँ है वह जल-धारण करने की क्षमता ? जलाशय में रह कर भी युगों-युगों तक नहीं बन सकते जलाशय तुम! मैं तुम्हें हृदय-शून्य तो नहीं कहूँगा परन्तु पाषाण-हृदय अवश्य है तुम्हारा, दूसरों का दुःख-दर्द देखकर भी नहीं आ सकता कभी जिसे पसीना है ऐसा तुम्हारा .....सीना! मूकमाटी (पृष्ठ ४९-५०) से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524335
Book TitleJinabhashita 2009 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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