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चाहिये, हल्दी या पीले रंग का प्रयोग कदापि न करें।। १६. रसोईघर में, बैठक में, शयनकक्ष में, स्टोर
५. बाजार की धूप अशुद्ध होती है, चन्दन का | में चैत्यालय कदापि न बनायें। ये अत्यन्त दोष को उत्पन्न बुरादा भी प्रासुक नहीं होता, अतः इनको या तो घर | करनेवाले तथा अशान्ति, दरिद्रता एवं ऋद्धि-सिद्धि को पर तैयार करें या लोंग कूटकर धूप बनायें। अगरबत्ती | समाप्त करनेवाले होते हैं। भी शुद्ध होनी चाहिये।
१७. यदि हमारा निवास छोटा है, घर में जगह ६. किसी भी रथयात्रा या उत्सव के अवसर पर | ही नहीं है, चैत्यालय को वास्तुशास्त्रानुसार निर्मित नहीं मूर्ति स्पर्श करनेवाले को शुद्ध धुला हुआ धोती-दुपट्टा | कर पा रहे हैं, तो चैत्यालय नहीं बनाना चाहिये। अविनय पहनना आवश्यक है। पेन्ट-शर्ट पहनकर मूर्ति स्पर्श कदापि | पूर्वक जिनबिंब विराजमान करना उनकी पूज्यता एवं न करें।
पवित्रता का ध्यान नहीं रख पाना हमारे जीवन में अनिष्ट ७. चैत्यालय में टेलीफोन, खण्डित मूर्ति, कागज- करनेवाला है। प्लास्टिक-काँच एवं एल्यूमिनियम आदि की मूर्तियाँ न १८. वास्तुशास्त्र के विपरीत निर्मित मंदिर समस्त रखें। ये पूजनीय नहीं होती हैं।
समाज को भी प्रभावित करते हैं और गृहस्वामी पर भी ८. स्वर्गस्थ एवं जीवित गृहस्थों के तथा बीड़ी-| विपरीत प्रभाव डालते हैं, अतः गृहचैत्यालय बनाते समय साबुन आदि के विज्ञापनसहित भगवान् और मुनिराजों | वास्तु एवं प्रतिष्ठाशास्त्रों के निर्देशों का पूर्ण ध्यान रखना के चित्र नहीं लगावें। हिंसक पशुपक्षियों के चित्र भी | चाहिये। न लगायें।
१९. चैत्यालय में दिगम्बर, वीतरागी प्रतिमाओं के ९. चैत्यालय में झाड़, कचरा, डस्टबीन, भोजन | साथ सरागी देवीदेवताओं की प्रतिमा कदापि स्थापित न करें। सम्बन्धी कच्ची पक्की सामग्री, गृहस्थी सम्बन्धी हल्की | २०. जिन घरों में गृहचैत्यालय तो हैं, परन्तु उनकी भारी वस्तुएँ, तिजोरी आदि न रखें। सिर्फ मंदिर से | पूजा व्यवस्था उचित रूप से नहीं की जा रही है, उनको संबन्धित वस्तुयें ही रखें।
चाहिये कि वे उन प्रतिमाओं को निकटस्थ जिनमंदिर १०. जूंठे हाथ एवं मुँह सहित या जूता-चप्पल | में स्थापित करके उनकी पूजा भक्ति वहीं जाकर करें। पहनकर, निद्रा के एवं शौच के कपड़े पहनकर, अधूरे | वर्तमान समय में उपर्युक्त सावधानियाँ रखना वस्त्र पहनकर चैत्यालय में प्रवेश न करें। रजस्वला | अत्यन्त कठिन हो गया है। लोगों ने बताया कि घर स्त्रियाँ कदापि प्रवेश न करें और दरवाजे पर भी न बैठें। | में जो वृद्ध माता-पिता हैं, वे मंदिर तक नहीं जा सकते, इनकी मंदिर पर छाया पडना भी महा अशभ है। अतः उनके दर्शन पूजन के लिए ये चैत्यालय बनाये
११. चैत्यालय से लगा हुआ शौचालय, मूत्रालय, जाते हैं। उन महानुभावों से निवेदन है कि अत्यन्त कचराघर, जूते-चप्पल रखने का स्थान न हो। | मजबूरी की हालत को छोड़कर गृह चैत्यालय न बनाना
१२. चैत्यालय के ऊपर की छत पर किसी को | ही श्रेयस्कर है। जिनप्रतिमा की भक्ति-पूजन यद्यपि परम्परा चलना फिरना नहीं चाहिये और उस छत पर अन्य सामान | से मोक्ष का कारण है, परन्तु यदि अविनय या अशुद्धि भी नहीं रखना चाहिये।
रखी जाये, तो वही प्रतिमा नरकादि-गमन का कारण १३. सीढ़ियों के नीचे अथवा सेप्टिक टैंक के | बनती है। अतः अपने गृहचैत्यालय के सम्बंध में इस ऊपर चैत्यालय नहीं बनायें।
लेख के अनुसार निर्माण तथा शुद्धि-सम्बन्धी समस्त १४. चैत्यालय में धूल, गंदगी एवं मकड़ी के | कमियों को तुरन्त दूर करें। इस लेख का यही सद्अभिप्राय जाले न लगने दें तथा पूजन के समय टेलीविजन एवं | है। यदि कोई कमी अथवा जिज्ञासा हो, तो उसे अपने फिल्मी संगीत की आवाज नहीं आनी चाहिये। । परिचित किसी भी प्रतिष्ठाचार्य को बुलाकर शीघ्र से
१५. शास्त्रभण्डार नैऋत्य या दक्षिण दिशा में बनायें | शीघ्र ठीक कराना ही अपने परिवार एवं समाज के लिए और इसमें स्कूल की पुस्तकें, व्यापार की रसीदबुक, | कल्याणकारी होगा। बहीखाते आदि लौकिक पुस्तकें या अन्य धर्म के शास्त्र रजवाँस (जिला-सागर) म. प्र. पिन- ४७०४४० बिल्कुल न रखें। मात्र जिनवाणी ही रखें।
मो. ९४२५६७२१५४, ९४०६५१८९७१
जनवरी 2009 जिनभाषित 13
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