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पर की दया करने से स्व की याद आती है
• आचार्य श्री विद्यासागर जी
विलोम-रूप से भी यही अर्थ निकलता है या--- द--- द--- या--- ।
साथ ही साथ, यह भी बात ज्ञात रहे
कि
पर पर दया करना बहिर्दृष्टि-सा --- मोह-मूढ़ता-सा--- स्व-परिचय से वंचित-सा--- अध्यात्म से दूर--- प्रायः लगता है
ऐसी एकान्त धारण से अध्यात्म की विराधना होती है। क्योंकि, सुनो! स्व के साथ पर का और पर के साथ स्व का ज्ञान होता ही है, गौण-मुख्यता भले ही हो। चन्द्र-मण्डल को देखते हैं नभ-मण्डल भी दीखता है। पर की दया करने से स्व की याद आती है और स्व की याद ही स्व-दया है
वासना का विलास मोह है, दया का विकास मोक्ष हैएक जीवन को बुरी तरह जलाती है--- भयंकर है, अंगार है! एक जीवन को पूरी तरह जिलाती है---
शुभंकर है, शृंगार है। हाँ! हाँ!! अधूरी दया-करुणा मोह का अंश नहीं है अपितु आंशिक मोह का ध्वंस है।
मूकमाटी (पृष्ठ ३७-३९) से साभार
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