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व्यवधान का सावधान होकर
सामना
• आचार्य श्री विद्यासागर जी
विपत्तियों से द्वेष रखना अपने को सम्पत्तियों से वंचित रखने का मार्ग है। सम्पत्तियाँ चाहिए, तो विपत्तियों को भी गले लगाना होगा। मूकमाटी की अधोलिखित काव्यपंक्तियाँ इस मनोवैज्ञानिक सन्देश को फूल और काँटों के प्रतीकविधान द्वारा बखूबी प्रेषित करती हैं।
सम्पादक
प्रत्येक व्यवधान का सावधान होकर सामना करना नूतन अवधान को पाना है, या यों कहें कि अन्तिम समाधान को पाना है।
गुणों के साथ अत्यन्त आवश्यक है दोषों का बोध होना भी, किन्तु दोषों से द्वेष रखना दोषों का विकसन है
और
गुणों का विनशन है, काँटों से द्वेष रख कर फूल की गन्ध-मकरन्द से वंचित रहना अज्ञता ही मानी है,
और
काँटों से अपना बचाव कर सुरभि-सौरभ का सेवन करना विज्ञता की निशानी है सो--- विरलों में ही मिलती है!
मूकमाटी (पृष्ठ ७४) से साभार ।
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