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जैनविद्या विश्वकोश
पं. मूलचन्द्र लुहाड़िया लम्बे समय से जैनविद्या के दर्शन, इतिहास, आचार, I (जिनकी सूची संलग्न है) का पारायण किया गया तथा साहित्य, कला, पुरातत्त्व आदि का प्रामाणिक परिचय विश्व | उनमें से संज्ञाओं को. उनके भेद-प्रभेदों. सन्दर्भो व के चिंतकों/जिज्ञासुओं को प्रदान करनेवाली ठोस सामग्री | विवरणसहित संकलित किया गया। जिसमें लगभग ४०का अभाव अनुभव किया जा रहा था। उसके अभाव के | ५० हजार शब्दों का ससन्दर्भ संकलन सम्पन्न हो चुका कारण देश-विदेश के बुद्धिजीवियों की धारणा में जैनविद्या | है। के धर्म, दर्शन एवं इतिहास के सम्बन्ध में अनेक भ्रमपूर्ण सन्दर्भग्रन्थों में जैनविद्या के लगभग सभी विषय के चित्र अंकित हो रहे थे और उसके परिणामस्वरूप समय- ग्रन्थों का उपयोग किया गया है। इसमें जैनधर्म के सभी समय पर पुस्तकों/लेखों के माध्यम से भ्रमपूर्ण धारणाएँ | सम्प्रदायों के मूलग्रन्थों के आधार से सामग्री संकलित की जन-साधारण में प्रचारित होती रही हैं।
गई है। इसके अनन्तर ये सन्दर्भ वर्गीकृत होकर प्रविष्ट अतः सर्वोदय जैनविद्यापीठ ने जैनसाहित्य के मूल | लेखन के कार्य में सीधे प्रयोग किये जा सकेंगे। प्रामाणिक ग्रन्थों में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दों के उन्हीं ग्रन्थों, २. संकलन के साथ संग्रहीत सन्दर्भो के परीक्षण/ में उपलब्ध उनके भेद-प्रभेद सहित अर्थ को दिग्दर्शित | पुनरावलोकन का कार्य भी समानान्तर रूप से दो अध्येताओं करनेवाले एक जैनविद्या विश्वकोश की रचना की योजना | द्वारा सम्पन्न हो रहा है। इसमें प्रथम कार्य सन्दर्भ के संकलन जैनविद्या के प्रभावक आचार्य परम पूज्य विद्यासागर महाराज | के समय लिये गये संकेतों के निरीक्षण का होता है। अनन्तर की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से प्रारम्भ की। इस योजना को | उनके सन्दर्भो का पुनरीक्षण एवं संभावित स्खलन का मूर्तरूप देकर इसका शुभारम्भ करनेवाले जैनविद्या के | संशोधन / परिवर्धन आदि किया जाता है। इसमें अभी तक यशस्वी विद्वान् डॉ० वृषभप्रसाद जैन, लखनऊ हैं। पश्चात् | २०० ग्रन्थों (सूची में तारांकित ग्रन्थविशेष) के संशोधन जैनविद्या के अध्येता विद्वान् डॉ. भागचन्द्र जैन 'भास्कर' | का कार्य सम्पन्न हो चुका है। नागपुर के मार्गदर्शन में एवं डी. राकेश जैन के सहयोग | सर्वोदय जैनविद्यापीठ ग्रन्थालय से शब्दकोश का कार्यालय सागर में आरम्भ किया गया। ३. इस कार्यालय द्वारा जैनविद्या विश्वकोश परियोजना
सर्वोदय जैनविद्यापीठ की महत्त्वाकांक्षी योजना के लिए आवश्यक पुस्तक संग्रह का कार्य भी समानान्तर जैनविद्या विश्वकोश परियोजना के कार्य को सुव्यवस्थित | रूप से किया जा रहा है। अभी तक इसके अपने गति देने के लिए जनवरी २००२ में सागर कार्यालय का | पुस्तकालय में ९ हजार पुस्तकों का संग्रह पूर्ण हो चुका शुभारम्भ किया गया। जिसमें इस परियोजना के साथ अन्य | है। इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय पुस्तक विभाजन के मानकों के आधार कार्य भी समानान्तर रूप से संचालित हो रहे हैं। विगत् | पर वर्गीकृत किया गया है। जिसके कुल ५८ विभाग हैं। वर्षों से जैनविद्या विश्वकोश का कार्य प्रगति पर है। इसके | यदि अन्यत्र भी इस पद्धति का उपयोग किया जाये तो समय, श्रम एवं व्ययसाध्य होने के कारण शीघ्र ही निष्पन्नता पाठकों/उपयोगकर्ताओं को पुस्तकीय सूचनाओं से लाभान्वित दिखाई नहीं देती। फिर भी इसके निम्न विवरण दष्टव्य | होने में अत्यधिक सविधा प्राप्त होती है। पस्तकों की
उपलब्धता प्रदर्शित करने के लिए पुस्तक शीर्षकाधारित १. संचालक मण्डल के निर्णयानुसार परियोजना में | एवं लेखकाधारित सूचनापत्रों (कार्डस्) का निर्माण कर जैनविद्या की सभी विधाओं के मूलभूत ग्रन्थों (यदि आचार्य | सुसज्जित किया गया है। पुस्तकों के अतिरिक्त जैनसमाज भगवन्त प्रणीत हैं तो वे, अन्यथा उपलब्ध प्रामाणिक सामग्री में प्रकाशित होनेवाली शताधिक नियमित पत्रिकाओं की से) के द्वारा संज्ञाओं (पारिभाषिक शब्द, शब्दों की विशेषताएँ, अनेक वर्षों की फाईलें भी उपलब्ध हैं। स्थान एवं व्यक्तिवाचक शब्द आदि विविध सन्दर्भो) के | शोध-सहयोग/मार्गदर्शन संग्रह का कार्य निरन्तर १० प्रशिक्षुओं द्वारा सम्पन्न कराया। ४. कार्यालय में पुस्तकों की उपलब्धि के आधार गया। इनके द्वारा अब तक लगभग २५० से अधिक ग्रन्थों। पर जैनधर्म एवं जैनविद्या पर अनुसन्धानकर्ताओं को
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- अप्रैल 2008 जिनभाषित 25
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