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________________ फिर नथुनी सिंह ने दूसरा विवाह किया जिनसे जोगेन्द्रर | पास के सरैया गाँव में गया जहाँ उस रत्न के उसे चार सिंह आदि पुत्र हुए। आपके दो भाई (पहली माँ के) देवी | हजार रूपये मिले। उसके बाद उसने कलकत्ता में दूसरा नारायण और दीप नारायण सिंह हैं जिन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत | रत्न बेचा तो उसे ८० हजार रूपये मिले। फिर कुछ दिनों धारण किया था। उनमें से दीप नारायण सिंह का अवसान | बाद दिल्ली में उसने तीसरा रत्न बेचा जो चार लाख रूपये हो चुका है। देवी नारायण आज भी है। उनकी एक झोपडी | में बिका। उसे यह घड़ा तीन वर्ष पूर्व (२००५ ई.) में अलग है। शान्त स्वभाव से नियमित कार्य करते हुए जीवन | मिला और तीन वर्ष में आज वह बहुत बड़ा आदमी बन यापन कर रहे हैं। इन घरों में आज भी आलू (जमीकन्द) | गया है। बीच में ग्रामवासियों ने इस आश्चर्य को देखकर आदि का खान-पान नहीं होता है। ये लोग अभी भी रात्रि उससे जानना चाहा। उसने कुछ लोगों को यह बता भी भोजन नहीं करते हैं। दिया। कभी कोई थाना प्रभारी उसे पकड़ने आया तो उसने वर्तमान में वासोकण्ड गाँव के उत्तरी और दक्षिणी | उसे भी वह रत्न देकर अपने को बचा लिया। कुछ ग्रामीण खण्ड हैं। यह लोग उत्तरीखण्ड वासी हैं जिनका ऊपर | जनों को भी उसने रत्न दिये हैं। परिचय दिया है। इन २५ घरों में आज भी २० घर पूर्णतः । एक ओर जहाँ वैशाली, आम्रपाली के कारण शाकाहारी हैं। कलिकाल के प्रभाव से अब संस्कार धीरे- | पाटलिपुत्र के राजा अजातशत्रु से कई बार जीती गयी, धीरे नष्ट होता जा रहा है। दक्षिणखण्ड में रहनेवाले बहत | विध्वंस की गयी और आतंक का केन्द्र बनी रही वहीं से परिवार में माँसाहार भी होने लगा है। ब्रह्मचर्य धारी भी दसरी ओर सिद्धार्थ का यह वासोकण्ड आतातायियों से अब मात्र दो व्यक्ति बचे हैं। फिर भी महावीर के प्रति | सुरक्षित रहा है। यहाँ के ग्रामीण लोग अतिशय मानते हैं श्रद्धा ग्रामवासियों की बनी हुई है। पूजा पद्धति में पूर्वज | कि यहाँ कभी प्राकृतिक प्रकोप भी नहीं हुआ है। सर्वत्र लोग क्या पढ़ते थे, गाते थे यह भी सब विलुप्त प्रायः हो | शान्ति और सुखदकारी वातावरण है। गया है। ___ पास में एक क्षत्रिय ग्राम है। दंत कथा है कि राजा इस ग्राम के आस-पास भी कुछ ग्राम हैं जो महावीर | सिद्धार्थ का राज्य विस्तार उसी क्षत्रिय गाँव की ओर पूर्वी की ऐतिहासिकता को सूचित करते हैं। वासोकुण्ड से एक | क्षेत्र में हिमालय की तराई तक था। राजा चेटक उनके साले किमी. पश्चिम उत्तर में एक गाँव है जो पहले महावीर | थे इसलिये यहीं पास में आकर सिद्धार्थ बस गये थे। वैशाली पुर कहलाता था आज उसे वीरपुर कहते हैं। वासोकुण्ड | और वासोकुण्ड को विभाजित करनेवाली एक नदी थी जो से ३ किमी. पश्चिम में बनिया गाँव है जो पहले वाणिज्य | गण्डक नदी के नाम से जानी जाती है। आज उस नदी ग्राम कहा जाता था। शास्त्रों में महावीर से जुड़ी इस गाँव | की धारा बदल गयी है। वह नदी अभी भी है। लोग कहते में अनेक घटनाओं का साक्ष्य मिलता है। पास में आनन्दपुर | हैं कि वह पहले गंगा नदी के नाम से ही जानी जाती थी। और जैनीनगर के नाम से भी गाँव है। भौगोलिक स्थिति को देखते हुए प्रतीत होता है कि श्रद्धा की कोई भाषा-परिभाषा नहीं होती है इसी | वासोकुण्ड एक प्रसिद्ध गढ़ था जिसके चारों ओर से जाने उक्ति को चरितार्थ करते हुए ग्रामवासी कहते हैं कि जब | आने का स्थान था। आज भी वासोकुण्ड के चारों ओर भगवान् महावीर का जन्म हुआ था तो उस समय इन्द्र ने | सड़क-पथ है। रत्नों की वर्षा की थी वे रत्न आज भी प्राप्त होते हैं। एक | वासोकुण्ड की इस धरती में अभी भी भगवान् सत्य घटना है कि बनियाँ गाँव में एक मजदूर ईंट बना | महावीर के पवित्र जीवन की सुबास है। यह सुबास काल रहा था। उसने ईंटा बनाने के लिए ३-४ फीट मिट्टी खोदी | के प्रभाव से कहीं विलुप्त न हो जाये इसलिये यह सब तो एक घड़े में रत्न मिले। दिन में घड़ा मिलते ही उसने | उल्लेख है। . उस घड़े को वही पूर दिया। रात्रि में आकर घड़ा निकाल इत्यलम् ले गया। उसमें से एक रत्न लेकर कुछ दिनों बाद वह प्रस्तुति- ब्र. मनोज जैन आरा-पटना (विहार) 12 अप्रैल 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524327
Book TitleJinabhashita 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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