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________________ के राजमहलीय शौकों से आम वर्ग को आतंकित कर रहा हैं। छोटे-छोटे बच्चे तक यह सोचने लग गये हैं कि मैं कक्षा में इसलिए पिछड़ा हूँ अथवा मेरा मन पढ़ाई में इसलिए नहीं लगता क्योंकि मेरे घर का वास्तु ठीक नहीं है। टेलीवीजन चैनल इन अंधविश्वासों को आधुनिकता की शक्ल दे रहे हैं। इन रूढ़ियों और अंधविश्वासों की एक इण्डस्ट्री खड़ी हो गयी है । मुझे बड़ा आश्चर्य होता है जब वीतरागता की आराधना करने वाले जैन घरों में भी फेंगशुई की धनवर्षा करवाने वाली घडियाँ लटकती हैं, लाफिंग बुद्धा की बेडौल मूर्तियाँ रखीं होती हैं, एक डरावने स्वप्न की तरह दिखने वाला भयानक मेढ़क मुँह बा कर शो केस में ऐसे रखा रहता है मानो हमारे खोखलेपन का मज़ाक उड़ा रहा हो । मेरा प्रश्न है- क्या हम भी अपने शुभाशुभ भाव के फलस्वरूप पुण्य-पाप की करनी और भुगतनी को भूल बैठे हैं? है कोई ऐसा तंत्र, मंत्र, वास्तु, ज्योतिष, गण्डा - ताबीज जो उदीयमान पापकर्मों की प्रकृति बदल दे। या फिर पुण्य छीन ले । वीतराग सर्वज्ञों के जो ज्ञान में तीनों कालों में तीनों लोकों का स्वरूप आया उसमें परिवर्तन कर दे? इन निमित्त नैमित्तिक ज्ञान विज्ञानों का अपना अलग महत्त्व होगा । किन्तु इन्हें उतना ही महत्त्व दिया जाना चाहिए जितनी हद तक इनकी प्रामाणिकता प्रकाशन स्थान प्रकाशन अवधि 'जिनभाषित' (हिन्दी मासिक ) के सम्बन्ध में तथ्यविषयक घोषणा : 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, आगरा- 282002 (उ.प्र.) : मासिक मुद्रक-प्रकाशक राष्ट्रीयता पता सम्पादक पता स्वामित्व है । जीवन के सुख दुःख तथा विचित्र स्वरूप के सत्य का ज्ञान इतना बहुआयामी है कि इसकी खोज में आज तक ये सभी विद्यायें किसी अन्तिम व प्रामाणिक निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकीं हैं । हर भविष्यवाणी फलादेश अपने अपने कारणों के प्रति सदा एक से नहीं रहते, बदलते रहते हैं । अपवादों का भण्डार भी इतना है कोई भी घोषणा अंतिम रूप से नहीं हो सकती । ज्योतिष शास्त्र के किसी अध्येता ने आज तक ऐसी भविष्यवाणी नहीं की कि लोग यह स्थान खाली कर दें क्योंकि इस दिन अथवा इस महिने यहाँ भूकम्प आयेगा या फिर सुनामी आयेगा और बर्बादी फैलायेगा । हाँ ये घटनायें होने के बाद हर अखबार में एक ज्योतिषी का लेख होता है जो ये समझाता है कि किस ग्रह की किस दशा के कारण यह हुआ ? कहने का तात्पर्य भूतकाल का विश्लेषण ज्यादा होता है जो प्रत्यक्ष घटित हो चुका है अथवा वर्तमान में घटित हो रहा है। वास्तव में होगा क्या? यह तो अतीन्द्रिय ज्ञान का ही विषय है । सार यह है कि परम्पराओं की रक्षा के प्रयास में यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि कैसी परम्पराओं को सुरक्षित रखना है या पुर्नजीवित करना है क्योंकि गृहीत मिथ्यात्व की परम्परा भी उतनी ही प्राचीन है जितनी सम्यक्त्व की । श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली : रतनलाल बैनाड़ा : भारतीय Jain Education International : 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, आगरा 282002 (उ.प्र.) : प्रो. रतनचन्द्र जैन : ए/2, मानसरोवर, शाहपुरा, भोपाल - 462039 (म. प्र. ) : सर्वोदय जैन विद्यापीठ, 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, आगरा - 282002 (उ.प्र.) मैं, रतनलाल बैनाड़ा एतद् द्वारा घोषित करता हूँ कि मेरी अधिकतम जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त विवरण सत्य है । रतनलाल बैनाड़ा, प्रकाशक मार्च 2008 जिनभाषित 21 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524326
Book TitleJinabhashita 2008 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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