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वस्तुतत्त्व समझने के लिए अध्यात्मयात्रा जरूरी
० उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी दिनांक 29.3.2007, है, जब व्यवहार नय का कथन चलता हैं तब निश्चय गौण रहता भोपाल मंगलवारा-मंदिर है। एक नय फूल है, तो दूसरा नय फल है। दोनों नय नदी के दो के निकट विशाल पाण्डाल तटों के समान हैं सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों का अपने-अपने में धर्मसभा को संबोधित स्थान पर महत्त्व है। अतः विवादों से ऊपर उठकर वस्तु तत्त्व को
करते हुये उपाध्याय श्री समझना चाहिये। ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि साधना अध्यात्म की यात्रा के लिये जरूरी है। कायोत्सर्ग वस्तु तत्त्व को समझने के लिये अध्यात्म की मात्रा जरूरी है। का अर्थ-शरीर में रहते हुये शरीर के प्रति आसक्ति नहीं होना। देह श्रमणों को तो आवश्यक है ही गृहस्थ को भी अध्यात्म की से विदेह की यात्रा, बाहर से अंदर की यात्रा, भोग से योग की यात्रा यात्रा जरूरी है। बाहर से अंदर जाने की प्रक्रिया का नाम का नाम कायोत्सर्ग है। 9 बार णमोकार मंत्र पढ़ लेना मात्र अध्यात्म है। अकेलेमात्र अध्यात्म की चर्चा करने से वस्तु कायोत्सर्ग नहीं है। सहिष्णुता का विकास जिन्हें, जीवन में हो तत्त्व समझ में नहीं आयेगा। उसको जीवन में आचरित जाता है,वही कायोत्सर्ग की साधना कर सकता है। करना होगा।
आज सहनशक्ति नहीं रही, जरा-जरा सी परिस्थिति में मैं शुद्ध हूँ, मैं बुद्ध हूँ, ऐसा शब्दों से कहना सरल है, व्यक्ति असंतुलित हो फलस्वरूप आज हर व्यक्ति अशान्त है। पर जब कोई गाली दे, उस समय मन में उसके प्रति प्रतिशोध सर्दी-गर्मी-भूख प्यास सहन नहीं होती, 10 मिनिट भी अगर की भावना न जागे, तो समझना आपने अध्यात्म को मात्र भोजन आने में बिलम्ब हो जाता हैं तो क्या होता है? आग बबूला शब्दों से नहीं जाना है, उसका अनुभव भी किया है। हो जाते हो।
चारों ओर से कर्मों की छावनी आ जाने के बाद भी धन जब आप कमाते हैं, तो कितना सहन करना होता है, जो अपने धैर्य के बांध को नहीं तोड़ता वही आध्यात्मिक है। तब कहीं आप धनाढ्य कहलाते हैं। प्रतिकूलताओं के बीच रहकर भी जो मुस्कुराता रहता है, एक विद्यार्थी जब परीक्षा आती है, तब रातो-रात पढ़ता है, वही आध्यात्मिक है। निरंतर संवर-निर्जरा की ओर जिनके कितना श्रम करता है, तब कहीं वह अच्छे अंकों को प्राप्त कर कदम बढ़ते रहते हैं, वही आध्यात्मिक है। समयसार पढ़ने सकता है। के बाद भी अशुभोपयोग की मात्रा अगर आप के जीवन में जब लौकिक क्षेत्र में बाध्य निधि को प्राप्त करने के लिये चल रही है, आस्रव-बंध की प्रक्रिया चल रही हैं तो सोच सहन शक्ति जरूरी है फिर आंतरिक संपदा को प्राप्त करने के लिये लो अभी आपने अध्यात्म की गहराई को नहीं जाना है, क्या सहनशक्ति जरूरी नहीं है? अवश्य है। अन्त में पूज्यश्री ने अध्यात्म को जानने वाले व्यक्ति का आमूल-चूल परिवर्तन कहा कि अध्यात्म की यात्रा हेतु हर व्यक्ति को अपना मानस बनाना हो जाता है।
चाहिये,तभी बहिर्यात्रा से छुटकारा पाया जा सकता है। आज पक्षपात में उलझकर कषाय की ग्रंथि को प्रवचन के पश्चात् ब्र. अनीता दीदी के द्वारा प्रश्नमंच का मजबूत किया जा रहा है फलस्वरूप आज परस्पर में विवाद आयोजन किया गया। चल रहा है, किसी ने मात्र निश्चय का पक्ष पकड़ लिया है, दोपहर में पूज्यश्री के द्वारा स्वाध्याय की श्रृंखला में अनेको किसी ने मात्र व्यवहार का पक्ष पकड़ लिया है। वस्तु- तत्त्व जिज्ञासाओं का समाधान दिया गया।
को जानने के जो साधन हैं प्रमाण और नय, उन्हें आज शाम को 6.30 बजे से 7 बजे तक गुरुभक्ति का आयोजन विवादों का कारण बना लिया है। निश्चय नय शुद्ध दशा का किया गया। तत्पश्चात् ब्र.अनीता दीदी ने धार्मिक कक्षा द्वारा सच्चे वर्णन करता है व्यवहार नय अशुद्ध-दशा का वर्णन करता देव शास्त्र, गुरु का लक्षण बताते हुये नमस्कार करने का उद्देश्य है। जब निश्चय का कथन चलता हैं तब व्यवहार गौण रहता बताते हुये नमस्कार करने की मुद्रा का विवरण किया।
ब्र. अनीता दीदी
दभा
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