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________________ मुनिश्री क्षमासागर जी की कविताएँ पहला कदम सारे द्वार खोलकर बाहर निकल आया हूँ, क्या कोई विश्वास करेगा कि यह मेरे भीतर प्रवेश का पहला कदम है। चुप रह जाता हूँ जब कभी लगता है कि तुमसे पूछूबच्चों की तरह, कि सूरज को रोशनी कौन देता है, कि आकाश में इतना नीलापन कहाँ से आता है, कि सागर में इतना पानी कौन भर जाता है, तब यह सोचकर कि कहीं तुम हँसकर टाल न दो कि मैं बड़ा हो गया हूँ मैं चुप रह जाता हूँ। दाता रेत पर पैरों की छाप नदी के किनारे रेत पर पड़ी अपने पैरों की छाप । सोचा लौटकर उठा लाऊँ। मुड़कर देखा, पाया उठा ले गई हवाएँ मेरी छाप अपने आप । अब मन को समझाता हूँ कि हवाएँ सब दुश्मनों की नहीं होती जो मिटाने आती हों हमारी छाप । असल में, अहं की रेत पर बनी हमारी छाप मिट जाती है अपने-आप । उसने कुछ नहीं जोड़ा, लोग बताते हैं पहनने का एक जोड़ा भी उसके पास नहीं मिला, जिंदगी भर अपना सब देता रहा, दे-देकर सबको जोड़ता रहा। Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.524297
Book TitleJinabhashita 2005 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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