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________________ "यह उपान्त पत्र है, अन्तिम निवेदन है, अन्तिम चेतावनी भी है। इसके बाद जो अन्तिम पत्र होगा, उसे मैं आपके लिए नहीं भेजूंगा। वो पत्र मिलेगा आपको एक दैनिक अखबार से, एक न्यूज चैनल से और भारतवर्ष में बसनेवाले एक-एक बच्चे से। अन्तिम पत्र में सप्रमाण खुलासा होगा, 400 पृष्ठ की एक रिपोर्ट होगी और जैनसमाज के मुख पर कालिख होगी।" ___ "अभी समय है, रोक सकते हो, तो रोक लो उठने वाले तूफान को, सँभाल सको तो सँभाल लो जिनधर्म को, शीघ्र-अतिशीघ्र निर्णय करो, अन्यथा आनेवाले समय में कोई भी दिन जैनधर्म के इतिहास का सबसे काला दिवस होगा।" हस्ताक्षर ब्र. इन्द्रकुमार जैन (पोटी भइया) 01.03.2003 इन पंक्तियों से ब्र. इन्द्रकुमार पोटी के हृदय का तीव्र क्षोभ और आक्रोश प्रकट होता है, और ज्ञात होता है कि उन्होंने एक दिगम्बराचार्य के चारित्रिक पतन और उससे होनेवाली धार्मिक विकृतियों की शिकायत बड़े-बड़े पत्र लिखकर समाज के नेताओं से बार-बार की और यथोचित कदम उठाने का आग्रह किया, किन्तु किसी के भी कान पर जूं नहीं रेंगी, सबने इसे एक उन्मत्तप्रलाप कहकर टाल दिया। इससे हताश होकर उन्होंने जिनशासन के मुख पर कालिख पोतनेवाले इस टीवी-काण्ड को अंजाम दिया, जिसकी उन्होंने पहले ही चेतावनी दे दी थी। इससे सिद्ध है कि इस काण्ड का दोषी सम्पूर्ण जैनसमाज है। इस काण्ड से सभी श्रावकों को यह शिक्षा लेनी चाहिए कि मुनियों, आर्यिकाओं, एलक-क्षुल्लक और ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणियों के मामूली से मामूली भी शिथिलाचार की उपेक्षा न की जाय। उसका संगठित होकर सामूहिक रूप से विरोध किया जाय। उपेक्षा करने पर शिथिलाचार बढ़ते-बढ़ते दुराचार की हद तक पहुंच जाता है और वह जिनशासन के मुँह पर कालिख पोत देता है। ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं और घट रही हैं। कुछ का संकेत 'जिनभाषित' के पूर्वांक(नवम्बर 2004) के सम्पादकीय में पं. मूलचंद जी लुहाड़िया ने किया है। 'संस्कारसागर' के जुलाई 2004 के अंक में भी ऐसा एक उदाहरण है। यह शिक्षा भी लेनी चाहिए कि यदि कोई जिनभक्त किसी मुनि या आर्यिका के दुश्चरित्र की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट करता है, तो उस पर तुरन्त ध्यान दिया जाय और फौरन जाँचपड़ताल की जाय । यदि दुश्चरित्र सत्य सिद्ध होता है तो उस (दुश्चरित्र) मुनि या आर्यिका को शास्त्रोक्त प्रायश्चित्त ग्रहण करने के लिए बाध्य किया जाय। यदि इसके लिए वह तैयार नहीं होता या नहीं होती, तो उसे पदच्युत कर दिया जाय और यह खबर जैन समाचारपत्रों में प्रकाशित कर सर्वत्र पहुँचा दी जाय। यदि ऐसा नहीं किया गया और मुनियों, आर्यिकाओं आदि के शिथिलाचार और दुराचार की ओर ध्यान आकृष्ट करनेवालों को 'मुनिनिन्दक' और 'सोनगढ़ी' कहकर उपेक्षित, आतंकित, निन्दित और बहिष्कृत किया जाता रहा, तो ब्र. इन्द्रकुमार पोटी जैसे व्यक्ति भी उत्पन्न होते रहेंगे, टीवी पर बयान देनेवाली आर्यिकाओं जैसी आर्यिकायें भी पैदा होती रहेंगी और टीवी-काण्ड भी दुहराये जाते रहेंगे, जिनसे जिनशासन के मुख पर कालिख भी सदा पुतती रहेगी। अपने उपान्त्य पत्र में दी गई चेतावनी के अनुसार ब्रह्म वारी पोटी ने टीवी-काण्ड के द्वारा जैन धर्म के इतिहास का कालादिवस लाकर दिखा दिया है, अब इससे भी बड़ा कालादिवस लाकर न दिखा दें, जैसा कि अभी-अभी एक जैनेतर धर्मगुरु के जीवन में ला दिया गया है, इसके लिए सम्पूर्ण जैनसमाज को सतर्क रहना है। अतः जिनशासनभक्तों से मेरा आग्रह है कि शीघ्र ही एक अखिलभारतीय स्तर की उच्चस्तरीय जाँचसमिति गठित की जाय और गहन-छानबीन के द्वारा पुष्ट प्रमाणों को उपलब्ध कर दूध का दूध पानी का पानी किया जाय। यदि आर्यिकाओं और ब्र.पोटी के द्वारा टीवी के माध्यम से अपने गुरु पर लगाये गये आरोप सत्य सिद्ध होते हैं, तो उक्त गुरु को किसी अन्य आचार्य के सान्निध्य में दीक्षाछेद का प्रायश्चित्त लेकर पुन: मुनिदीक्षा लेने के लिए बाध्य किया जाय और उनके संघ की आर्यिकाओं को किसी अन्य आर्यिकासंघ से और मुनियों को किसी अन्य मुनिसंघ - -दिसंबर 2004 जिनभाषित 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524292
Book TitleJinabhashita 2004 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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