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जैन संस्कृति, तीर्थों का संरक्षण: आखिर किसका दायित्व?
डॉ. अनेकांत कुमार जैन गिरनार टोंक पर पंडों द्वारा जैनों के साथ मारपीट, विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष लहूलुहान )
गुजरात प्रदेश में जूनागढ़ स्थित गिरनार पर्वत जैनों का हजारों साल से पवित्र स्थान रहा है । जैन धर्म के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ वहाँ की पाँचवीं टोंक से मोक्ष गये थे। इसलिए जैन समाज हजारों साल से उसकी पूजा अर्चना करता चला आ रहा है किन्तु आज वहाँ पर तथाकथित भगवावेश धारी पंडों ने अनधिकार अतिक्रमण कर कब्जा जमा रखा है और दत्तात्रेय स्वामी की मूर्ति स्थापित कर उसकी पूजा कर कमाई कर रहे हैं। उस पाँचवीं टोंक
पर तीर्थंकर नेमिनाथ की प्राचीन प्रतिमा है तथा उनके चरणचिह्न डॉ. फूलचन्द्र जी जैन 'प्रेमी' भुजाओं पर बाखाओं द्वारा किये गये प्रहार के निशान
बने हुए हैं। आज कोई जैन भाई यदि अपने तीर्थंकर की पूजा के इतिहास गवाह रहा है कि जब-जब अपने धर्म, संस्कृति | लिए वहाँ जाता है तो उसके साथ क्या व्यवहार किया जाता है, एवं राष्ट्र पर आततायियों ने हमला किया है, तब-तब जैन बंधुओं
उसका प्रत्यक्ष भुक्तभोगी स्वयं मैं हूँ। ने डटकर उनका मुकाबला किया है। आज भी जब कभी राष्ट्र मैंने अपने परिवार के साथ २७/१०/२००४ को प्रात: तथा हिन्दू धर्म के ऊपर आँच आती है, तब नि:स्वार्थ भाव से जैन | काल ४ बजे गिरनार पर्वत की तीर्थयात्रा प्रारंभ की। करीब दस समाज तन-मन-धन से समर्पित हो जाता है। हिन्दू धर्म के ।
हजार खड़ी सीढ़ियों पर यात्रा करने के बाद जैसे ही हम पाँचवीं इतिहास पर हम दृष्टिपात करेंगे, तो पायेंगे कि प्राचीन काल से
टोंक पर पहुँचे तो वहाँ का दृश्य देखकर हम दंग रह गये। दो पंडे आज तक जैन धर्मावलम्बियों ने उनके हर आंदोलन में उनका जी
(जो कि कमलकुंड मठ के थे)वहाँ पर कब्जा किये हुये बैठे थे जान से सहयोग किया है। रामजन्मभूमि के लिए अपनी शहादत | तथा भगवान नेमिनाथ के चरणों को पुष्पों से ढके हये थे और देने वाले कोठारी बंधु जैन धर्मावलम्बी ही थे। हिन्दुत्व का नारा
ललकार कह रहे थे कि यहाँ सिर्फ हिन्दू दर्शन करने आयेंगे, कोई लगाने वाले 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ,''विश्व हिन्दू परिषद्' तथा भी जैन नहीं आ सकता और यदि आयेगा तो हम उसे मार 'भारतीय जनता पार्टी' जैसे अनेक दलों में जैन समुदाय के लोग | डालेंगे। उन भगवावेशधारी पण्डों साधुओं की ऐसी वाणी सुनकर अनेक पदों पर हैं तथा जैन व्यापारी वर्ग लाखों करोड़ों रुपये देकर
सबको अचम्भा हुआ, किन्तु तभी एक और घटना घटी। एक उनका भरणपोषण भी करता है। देश में कई हिन्दू मंदिर ऐसे हैं, | कर्नाटक वासी जैन भाई वर्धमान, राम सिरहरी (पता - ईनाप, जिनका निर्माण जैन बंधुओं ने अपने पैसे से करवाया है। आज
तालुकातनी, बेलगाम) आगे बढ़ा और बोला कि हम बहुत दूर से देश भर में जहाँ भी रामलीलायें या कथाव्यास होते हैं, उनमें कई | आये हैं हमें एक बार चरणों के दर्शन करवा दो। इस बात पर उन आयोजन जैन बंधु अपने पैसों से करते हैं, किन्तु जैन समाज की
पंडों ने उसे दो थप्पड़ रसीद किये। वह बौखलाया और उसका इस उदारवादिता का परिणाम यह हो रहा है कि आज उसकी
साथी सुनील जैन (बजन्नौर, देवगुला, हल्ली, बेलगाम) उसे बचाने खुद की अस्मिता संकट में है और इनमें से कोई भी संगठन
आगे आया। इतने में उन साधु पंडों ने आव देखा न ताव, दो मोटे उसका साथ नहीं दे रहे हैं।
डंडे उठाकर जमकर मारना चालू कर दिया। अपने जैन भाई को जैन संस्कृति कम से कम उतनी पुरानी तो है ही, जितनी | पिटते देख हमसे नहीं रहा गया और मैं तथा मेरे पिताजी डॉ. कि वैदिक संस्कृति । भारत की मूल श्रमण या जैन संस्कृति जो | फलचंद जैन प्रेमी (अध्यक्ष अखिल भारतीय दि.जैन विद्वत परिषद्) चौबीस तीर्थंकरों की पूजा करती है। वैदिक संस्कृति के पवित्र | उन्हें बचाने आगे आये। वे पंडे नहीं देख रहे थे कि स्त्री बच्चे भी जन्मस्थानों तथा निर्वाणस्थानों का आदर करती है। वहीं जैन | वहाँ हैं। उन्होंने उन्हें भी मारा और उन्हें बचाते हुये मैं और संस्कृति आज अपने ही देश भारत में अपने तीर्थों की सरक्षा के
पिताजी दोनों उनके निर्मम डंडों से लहूलुहान हो गये। इस घटना लिए गहार लगा रही है और सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग | से सीढी पर भगदड मच गयी। कई स्त्री. बच्चे, बजर्ग घायल हो रही है।
| गये। जयपुर दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय में कार्यरत पं.राजकुमार
- नवम्बर 2004 जिनभाषित 3
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