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मुक्ति-पथगामियों का मोक्ष यात्रा संकल्प
मुनि श्री आर्जव सागर जी हमें गौरव है कि हमारा भारत आध्यात्मिक देश । कहते हैं कि मोक्षमंजिल को पाने हेतु एक-एक व्रत की कहलाता है, जहाँ आत्म ध्यान के माध्यम से ऋषभदेव, | सीढ़ी पर चढ़ते हुए ब्रह्मचारी, प्रतिमाधारी, क्षुल्लक, ऐलक राम, हनुमान, महावीर आदि महापुरुषों ने संसार और पापों बनकर परिपक्वता के साथ साधु बनने पर मोक्ष का पथ से मुक्ति पाकर मोक्ष पद को प्राप्त किया। इसी तरह आज सरल हो जाता है एवं जो भव्य ब्रह्मचारी अवस्था से सीधा भी महापुरुषों की इस जन्म धरा (भारत) पर हजारों साधु,
मुनि बनने का धैर्य रखते हैं, वह सुयोग्यता धारण कर आत्मा पवित्र ध्यान करते हुए अपनी आत्मा को विशुद्ध
सीधा मुनि पद भी अंगीकार कर सकता है। परिग्रह पाप बना रहे हैं। उन्हीं संतों में से एक विरले अनोखे संत । का कारण है। संसार के पदार्थों से मोह जब तक रहता है शिरोमणि हैं- आचार्य श्री विद्यासागर। जिनके संघ में तब तक आत्मा के ध्यान में एकाग्रता नहीं आ सकती। शताधिक साधु एवं अनेकानेक साध्वियां, व्रती, ब्रह्मचारी "चाह लंगोटी की दुख भालें" वाली बात हमेशा आदि सच्चे सद्गृहस्थ जीवन में आत्मकल्याण करने हेतु __ ध्यान करवाते हैं और ध्यान के लिए यह मुनि भेष ही उत्तम मोक्षमार्ग में आकर स्व-पर कल्याण करने में तत्पर हैं।
साधन है, यह बतलाते हैं। मुनि लोग अधिक समय तक हाल ही नर्मदा के तट पर स्थित तिलवारा घाट जबलपुर में एवं निर्विकल्प रूप से जो ध्यान कर पाते हैं, उसका कारण पच्चीस बाल ब्रह्मचारी श्रावकों ने संसार मार्ग का परित्याग उनकी निष्परिग्रहता, निर्मोहता, अलौकिकता और योग धारण कर निर्ग्रन्थ दिगम्बर दीक्षा आचार्यश्री के चरणों में धारण
ही समझना चाहिए। अभी जिन पच्चीस भव्यों ने मुनिदीक्षा की और आचार्यश्री की शिष्य परंपरा में जुड़कर मुक्ति पथ धारण की है वे सभी लौकिक शिक्षा में अग्रणीय होकर में अग्रेषित होते हुए मोक्ष की यात्रा प्रारंभ की। इस दीक्षा
अपने परिजनों की अनुमतिपूर्वक, मोक्ष पथ में अभ्यस्त के अवसर पर उनके परिग्रह त्याग के दृश्य को, लाखों होकर, आचार्य श्री से निवेदन कर, इस पुनीत साधु पद को लोगों ने देखकर अपने आपको धन्य माना।
प्राप्त हुए हैं। इससे जैनधर्म मात्र ही नहीं, सारे देश एवं ___मोक्ष मार्ग में साधु बनने से पहले सच्चा श्रावक बनना
विश्व की गरिमा बढ़ी है। हमें विश्वास है इनकी तपस्या एवं लोक शिक्षण से परिपक्व होना आवश्यक है। आचार्य
जन-जन के हित का कारण बनते हुए इन्हें अपने मुक्ति विद्यासागर जी इसीप्रकार का भाव रखकर भव्यों को अपने
लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करायेगी। यह भाव टी.टी. नगर जैन संघ में ग्रहण करते हैं। सच्चे श्रावक बनने के लिए श्रावकों
मंदिर, भोपाल में ससंघ चातुर्मास कर रहे आचार्य विद्यासागर को श्रावकाचार पढ़ने की सत्प्रेरणा देते हैं एवं मात्र साधुओं
| जी महाराज के धर्म प्रभावक प्रौढ़ शिष्य 108 मुनि श्री को सच्चे मुनि पद पर दृढ़ रहने हेतु मूलाचार पढ़ाते हैं। वे | आर्जवसागर जी महाराज ने व्यक्त किए।
शाकाहार रैली परमपूज्य मुनि 108 श्री आर्जवसागर जी महाराज के | के निमित्त की जानेवाली जीव-जन्तुओं की हिंसा पर प्रतिबंध ससंघ सान्निध्य में दिनांक 2-10-2004 को श्री दिगम्बर जैन , लगाया जाए, क्योंकि आज प्रायः कई स्थानों पर इस कार्य पर मंदिर टी.टी. नगर (टीन शेड) भोपाल में मुख्यमंत्री श्री गौर | प्रतिबंध लग चुका है। के मुख्य आतिथ्य में शाकाहार रैली एवं विशाल धर्म सभा का 3. गाय से एक कल्पवृक्ष के सदृश दूध मिलता है और आयोजन किया गया।
घृतादिक का निर्माण होता है अतः उसे मोर और सिंह जैसा ___ अपने प्रवचनों में मुनि श्री आर्जवसागर जी महाराज ने राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए। मुख्य रूप से निम्न विषयों को रखकर मुख्यमंत्री जी से उन ____4. आचार्य समन्तभद्र स्वामी अनेक संस्कृत शास्त्रों को पर शीघ्र निर्णय लेने पर बल दिया
रचने वाले, आज से 2000 वर्ष पहले हुए हैं, जो तमिलनाडु 1. मंदिरों, तीर्थों, सार्वजनिक स्थानों पर दी जा रही में जन्मे तथा राजपुत्र थे। उनके नाम पर वर्ष में एक बार पशु पक्षियों की बलि देना रोका जाय क्योंकि कई प्रदेशों में समारोह आयोजित किया जावे। यह कानून बन चुका है।
मुख्यमंत्री ने अपने उद्बोधन में इन पर विचार कर शीघ्र ____ 2. स्कूलों, कालेजों में बायलॉजी पढ़ने वाले विद्यार्थियों | निर्णय लेने का आश्वासन दिया। अजित जैन, भोपाल 2 अक्टूबर 2004 जिनभाषित
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