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वैदिक रीति से पूजा पाठ आदि कराने का ठेका तथाकथित कुछ पंडों के हाथों में है, ठीक वैसे ही जैसे प्रयाग या काशी तीर्थ यात्रा हेतु आए यात्रियों को उनके दलाल अपने साथ में ले जाकर यात्रा कराते हैं असामाजिक तत्वों ने इस तीर्थ क्षेत्र में अतिक्रमण कर आवास इत्यादि भी निर्मित कर लिए हैं जो पूर्णत: अवैध निर्माण है। शासन का ध्यान विगत कई वर्षों से जैन समुदाय द्वारा इस ओर लगातार आकर्षित भी किया गया है, किन्तु आज तक उचित कार्यवाही उपेक्षित है, गौरतलब है कि गुजरात राज्य का यह क्षेत्र शासन के पुरातत्व विभाग के अधीन है तथा इसके संरक्षण का पूर्ण दायित्व पुरातत्व विभाग का भी है।
पर्वत माला पर जैन धर्मावलम्बी यात्रियों को अपने धार्मिक स्थल पर धार्मिक क्रियाओं अनष्ठान इत्यादि करने के लिए अवरोध उत्पन्न करना एक सामान्य बात हो गई है वे उनकी पूजा अर्चना में भी वि करते हैं साथ ही भगवान की जय-जयकार भी नहीं करने देते जो सर्वथा निंदनीय है, खेदजनक है।
पूरे देश में सर्वविदित है कि गिरनार सिद्ध क्षेत्र जैन समुदाय के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान की निर्वाण भमि है और ये धर्मावलम्बी अपने आराध्य इष्ट की पजा अर्चना एवं रखरखाव अपने धार्मिक एवं सामाजिक रीति रिवाजों के अनुसार अनादि काल से करते आ रहे हैं, ठीक उसी प्रकार जैसा की देश के अपने अन्य तीर्थक्षेत्रों का जैन समुदाय करता आ रहा है।
लगभग आठ दशक पूर्व पाँचवीं टोंक का जीर्णोद्धार इस क्षेत्र के संभ्रान्त निवासी "बंडी कारखाना वालों" दिगम्बर जैन धर्मावलम्बी परिवार द्वारा कराया गया था। दुर्भाग्यवश करीब 20-22 वर्ष पूर्व यहीं टोंक (छतरी) बिजली गिर जाने के कारण पुनः छतिग्रस्त हुई। संयोग की बात है कि पुनः वही धर्मावलम्बी परिवार इसका जीर्णोद्धार करवा कर पुण्य लाभ लेना चाह रहा है। जैन धर्मायतन में छतरी बनाने बनवाने की अपनी एक रीति है जो पवित्र भावना एवं श्रद्धा का प्रतीक है। जिसे पूर्ण धार्मिक अनुष्ठानों द्वारा सम्पन्न किया जाता है, जिनमें धर्मानुसार वर्जित निर्माण वस्तुओं का उपयोग भी नहीं किया जाता। इस धार्मिक भावना को ध्यान में रख वहाँ की प्रतिनिधि संस्था ने स्थानीय प्रशासन से इसके जीर्णोद्धार (पुनःनिर्माण) रखरखाव किए जाने हेतु उन्हें आज्ञा दी जाए इस हेतु निवेदन किया है किन्तु आज तक यह आज्ञा जैन समाज को नहीं मिली। वहीं इन अवांछित अन्य लोगों ने कुछ माह पूर्व इसके चारों ओर अवैध निर्माण कार्य चालू कर दिया जिसकी सूचना भी स्थानीय प्रशासन को समाज द्वारा दी गई बाद में न्यायालय द्वारा उस पर रोक लगाने थाने में (एफआईआर) हेतु पुरातत्व विभाग से निवेदन भी किया किन्तु जैन तीर्थ प्रतिनिधि संस्था की इस पहल पर कोई भी कार्यवाही आज तक नहीं की गई, जो देश के मूलभूत संवैधानिक अधिकारों की खुली अवहेलना का प्रतीक है। इस तरह के गैर कानूनी कार्यों को शासन द्वारा अनदेखा करना, सार्वजनिक हित में अशांति फैलाने और अवांछित तत्वों को प्रोत्साहन देने में भागीदार बनने के समान है। जिसकी निंदनीय भर्त्सना की जानी चाहिए एवं जिम्मेदार अधिकारियों पर इस गैर जिम्मेदाराना बर्ताव की न्यायोचित प्रतिक्रिया भी होनी चाहिए। ___ यदि 350 वर्ष का राम मंदिर या 800 वर्ष पूर्व ध्वस्त सोमनाथ मंदिर का पुनः निर्माण एक समुदाय की धार्मिक आस्था का प्रमाण है तो जैन समुदाय की आस्था और धार्मिक भावना भी तो उसी समान सम्मान की अधिकारी है। मंदिर स्थल आखिर मंदिर स्थल ही रहेगा। धर्मस्थलों को सुरक्षित रखने जिससे उस समुदाय के धर्मावलम्बियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुँचे इसका संवैधानिक दायित्व भारतीय संविधान में शासन
का है। ___स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिन्होंने देश के स्वतंत्रता समर में बलिदान दिए है, उन सभी को यथोचित सम्मान
और समान संवैधानिक अधिकार प्राप्त हो, इस सामाजिक सार्वजनिक मूलभूत आवश्यकता को ध्यान में रख भारतीय संविधान के कर्णधारों ने देश के अल्पसंख्यक समुदायों के संवैधानिक अधिकारों को सुरक्षित रखने के प्रावधान एवं उनके संरक्षण को प्राथमिकता के अनुक्रम में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 में समाहित कर उन समुदायों को एक संवैधानिक कवच बिना कोई भेद भाव के रखा है, उन्हें अपनी भाषा संस्कृति की रक्षा सुरक्षा का भी पूर्ण अधिकार है।
भारतीय संविधान के उपासना स्थल विशेष उपबंध अधिनियम 1991 को अधिनियम संस्था पर 18-09
28 अगस्त 2004 जिन भाषित
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