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________________ अन्याय के हजार वर्ष की अपेक्षा एक पल सत्य के साथ जीना उचित आचार्य श्री विद्यासागर जी पक्ष और विपक्ष दोनों अलग-अलग होते हैं। राष्ट्र में उनका लक्ष्य भी अलग-अलग होता है, किन्तुदीनी काराष्ट्रीय पक्ष एक ही होता है। राष्ट्रहित के पक्ष को मजबूत करने के लिए जिस तरह सभी पक्ष एकजुट हो जाते हैं, उसी प्रकार से अहिंसा का पक्ष भी हर जगह लिया जाना चाहिए। स्थान चाहे लोकसभा, राज्यसभा अथवा विधानसभा हो, अहिंसा के पक्ष को समर्थन सभी जगह दिया जाना चाहिए । अन्याय के पक्ष में हजार वर्ष जीने की अपेक्षा एक पल सत्य के साथ जीना उचित है। सत्य और अहिंसा के साथ ही विजय और मोक्ष के लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। शरीर को जैसा आप रखना चाहोगे,वह वैसा ही काम में आता है। जागृति भीतर से आना चाहिए। वह स्वप्रेरणा से मिलती है। आज का युग परिश्रम से दूर है। सुविधा के साथ भी लोग कुछ करना नहीं चाहते हैं। राष्ट्र में पक्ष और विपक्ष दोनों लक्ष्य भूलकर एक-दूसरे के विरोध में रहते हैं। देखने के लिए एक आँख काम में आती है। पर क्या उड़ने के लिए एक पंख पर्याप्त है ? कदापि नहीं । एक आँख से देखा तो जा सकता है, लेकिन दोनों आँखों से अलग-अलग जगहों पर एक साथ देखा नहीं जा सकता है। आँखें एक-दूसरे की मदद करती हैं और नाक उनके बीच कलह को रोकने का काम करती है। केन्द्र की बात करना सरल है, लेकिन केन्द्रीभूत होना बहुत कठिन होता है। मन को ब्रेक लगाओ और यदि मन मंजूरी देता है, तो सभी काम आँखों से ठीक हो सकते हैं। राष्ट्र में पक्ष और विपक्ष दोनों को चाहिए कि राष्ट्रीयता की भावना के साथ अपनी शक्ति और क्षमता का राष्ट्रहित में सदुपयोग करें। सही दिशा में कार्य करने से सुफल मिलता है। विचार को शालीनता से रखा जाना चाहिए। क्षोभ के बिना जो कार्य होता है,वह उचित है। लेकिन क्षोभ के बिना कार्य का यह अर्थ भी नहीं कि हाँ में हाँ मिला दें, अवसरवादी बन जायें। सभी मिलकर राष्ट्रीय पक्ष मजबूत करें। आत्मा का उद्धार स्वपरप्रकाशक ज्ञान के माध्यम से होता है। नेतृत्व करने वाला व्यक्ति काफी गम्भीर होता है। उसे किसी भी निर्णय को करने से पहले काफी गम्भीरता से विचार करना पड़ता है। नदी के बीच में उथल-पुथल नहीं होती, तथा न ही तरंग उठती है। वह तो किनारों को साथ लेकर चलती है। इसी प्रकार नेतृत्वकर्ता राष्ट्र के सर्वांगीण हित में विकास के लिए सोचता रहे, सभी को साथ में लेकर चलता रहे। शतरंज के खेल का उदाहरण देते हुए तपोनिधि ने कहा कि इस खेल में अपने को तथा विपक्ष को दोनों को देखें। पक्ष वाले को सामने वाले का पक्ष सीधा नहीं दिखता। उसके लिए उल्टी चाल चलनी होती है। वर्तमान में शतरंज का खेल प्रत्येक के जीवन के साथ चल रहा है। अन्याय का विरोध शतरंज के खेल की तरह उल्टी चाल से किया जा सकता है। विभीषण ने अन्याय के विरुद्ध स्वयं को मन,वचन और कर्म से समर्पित किया था। भगवान राम के समक्ष जब वह गया, तो बिना बोले ही उसका त्याग और समर्पण झलक रहा था, जैसे कि वह अग्निपरीक्षा के लिए तैयार हो। उसके हाव-भाव देखकर क्रोधित लक्ष्मण भी शांत हो गये। हमें भी शांति प्राप्ति के लिये क्रोधरूपी अग्नि को उतार देना चाहिए। अपने मनोभावों को हम बिना बोले ही प्रदर्शित कर सकते हैं। शब्द पंगु है। जवाब दिये बिना भी अपने सम्पूर्ण भावों को मुखमण्डल के माध्यम से अभिव्यक्त कर सकते हैं। प्रार्थना करो कि सामनेवाला आपके मनोभाव समझ ले। प्रेषक : निर्मलकुमार पाटोदी 22,जॉय बिल्डर्स कॉलोनी,इन्दौर 452003 (म.प्र.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524288
Book TitleJinabhashita 2004 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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