________________
आवश्यकता अन्वेषण- संस्थान की
समय की धड़कन को सुन पाने से एक ओर जहाँ दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। वहीं दूसरी ओर वर्तमान एवं भावी पीढ़ी का जीवन भी सम्हाला जा सकता है। वैज्ञानिकता आज की युवा पीढ़ी के जीवन की आधारशिला है किन्तु संयम कहिए या अनुशासन या नैतिक आचरण के परिप्रेक्ष्य में यह आधारशिला ठोस धरातल पर नहीं है । प्रतिकूलताएँ एवं प्रतिस्पर्धाएँ इतनी
एवं भयावह हैं कि उनके अन्धड़ में आचार विहीनता का महारोग ग्रस लेगा । अतः आज आवश्यकता इस बात की है युवा एवं भावी पीढ़ी को जैन धर्म / दर्शन में निहित जीवन जीने की कला सिखाई जाए। प्रश्न उठता है कैसे ? भाषण या प्रवचन से विशेष कुछ होने वाला नहीं है, हाँ जैनधर्म में निहित विज्ञान के पक्ष का गहन अध्ययन किया जाए। देश विदेश की समस्त जैन समाज एक ऐसा केन्द्रीय शिक्षा एवं शोध संस्थान स्थापित करे जिसमें जैन धर्म में निहित विज्ञान के पक्ष पर अध्ययन एवं प्रयोग शालाओं के माध्यम से अन्वेषण किया जाए। ऐसे संस्थान की ठोस योजना हेतु, सर्व प्रथम तो समर्पित व्यक्ति चाहिए जो जैन समाज के मानस को इस योजना से जोड़ सकें। फिर अर्थ और भूमि की आवश्यकता स्वमेव पूर्ण हो ही जाएगी। आशीर्वाद चाहिए सभी जैनाचार्यों का जिससे यह कार्य सुगम हो जायेगा ।
अब प्रश्न उठता है कि इस परियोजना का क्रियान्वयन करने हेतु धन कैसे जुटाया जाय। यदि हमारा समाज विभिन्न जगहों पर होने वाले पंचकल्याणक महोत्सवों एवं नित नये क्षेत्र एवं परियोजनाओं पर दृष्टिपात करें तो अपव्यय पर नियंत्रण किया जा सकता है तथा बचत की राशि से इस कार्य को क्रियान्वित कर सकते हैं।
पंचकल्याणक महोत्सव एक ओर जिनबिम्ब को संस्कारित करने की विधि है वहीं दूसरी ओर उससे धर्मप्रभावना भी होती है । किन्तु देखने में आता है कि समाज अकसर व्यवस्था तथा अनावश्यक क्रियाओं में बहुत अपव्यय कर देता है । उदाहरण के तौर पर कुछ लेखा शीर्ष जहाँ अपव्यय रोका जा सकता है निम्नलिखित है
1. पंडाल का विस्तार वास्तु शास्त्र या प्रतिष्ठा ग्रंथों के अनुसार बनाया जाता है किन्तु देखने में आता है कि आधा पंडाल खाली रहता । आयोजकों को अपने क्षेत्र विशेष में रहने वाले जैन समुदाय, उनकी रुचि तथा व्यस्तता को ध्यान में रखकर एवं पंचकल्याणकों में जाने का घटता हुआ आकर्षण देखकर ही पंडाल की साईज निर्धारित की जानी चाहिए इससे पर्याप्त बचत
22 जुलाई 2004 जिनभाषित
Jain Education International
हो सकती है।
2. सुरक्षा तथा सेनेटरी की व्यवस्था पर खर्च आवश्यक होता किन्तु जुलूस बैंडबाजे, हाथी-घोड़ा, गजरथ रंगीन पोस्टर में प्रचार सामग्री में खर्च सीमित किया जाना चाहिए।
3. धार्मिक अनुष्ठान में राजनेताओं का आमंत्रण बन्द ही कर देना चाहिए।
इंजी. धरमचन्द्र जैन बाझल्य
4. अकसर ऐसे अवसर पर रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। व्यवसायिक कलाकार एक से दो घण्टे के कार्यक्रम का अच्छा खासा पैसा ले जाते हैं, कुछेक तो कहींकहीं प्रतिष्ठाचार्य, मुनिराज या प्रभावशाली व्यक्ति के माध्यम से अपना कार्यक्रम रखवा देते हैं। परिणामतः अपने ही समाज द्वारा तैयार किया हुआ कार्यक्रम या तो आगे पीछे धकेला जाता है या रद्द करना पड़ता है। आयोजकों को दृढ़तापूर्वक एवं विनम्रता से ऐसे घुसपैठियों को मना कर देना चाहिए। इससे बचत तो होगी ही साथ ही अपने कलाकारों की प्रतिभा भी प्रकट होगी तथा मनोबल बढ़ेगा।
5. कार्यकारिणी समिति या न्यासियों की प्रारंभिक बैठक में ही मूर्ति को प्रतिष्ठित कराने के निम्न विकल्पों पर चर्चा कर निर्णय कर लेना चाहिए
-
(अ) पंचकल्याणक कराना है, या
(ब) आसपास में हो रहे पंचकल्याणक में मूर्ति प्रतिष्ठित कराना है ।
बाकी सभी कार्य नवनिर्मित मंदिर जैसे वेदीशुद्धि, ध्वजाशुद्धि, मूर्ति विराजमान करना, ध्वजारोहण, कलशारोहण आदि धूमधाम से किन्तु कम खर्च में किये जा सकते हैं।
उपरोक्त बातों पर यदि आरम्भ में मंथन कर निर्णय लें, तो अपव्यय से बचा जा सकता है। बचत की राशि जनकल्याणकारी योजनाओं में, नैतिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार में तथा अन्वेषण संस्थान की स्थापना में लगाई जाए तो धर्म प्रभावना कार्यकारी एवं स्थायी होगी।
For Private & Personal Use Only
अन्वेषण संस्थान
आज इस बात की परम आवश्यकता है कि अखिल भारतीय दिगम्बर जैन समाज एक ऐसा केन्द्रीय शिक्षा संस्थान एवं अनुसंधान संस्थान स्थापित करे, जिसमें जैन दर्शन में निहित सामान्य तथा विशेष विषयों पर जैसे-पदार्थ विज्ञान, अणुविज्ञान, भौतिक शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, रसायन शास्त्र, भूगोल एवं खगोल शास्त्र, पर्यावरण सुरक्षा, सामाजिक व्यवस्था, न्यायशास्त्र, इत्यादि
www.jainelibrary.org