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________________ भगवान् मुनिसुव्रतनाथ के मोक्ष जाने के 6 लाख वर्ष बाद वंशकिरण (करैया) अर कंद अर फूल अर बीज ये अग्नि करि नमीनाथ भगवान मोक्ष गए। भगवान नमीनाथ के मोक्ष जाने के पके हुए नाहिं होय काचे होय तिनकू निरगल हुआ भक्षण नाहीं पाँच लाख वर्ष बाद में भगवान नेमीनाथ मोक्ष गये। भगवान करें, सौ श्रावक दया की मूर्ति सचित्तविरत नाम पंचम पद कूँ नेमीनाथ के मोक्ष जाने के 83750 वर्ष बाद भगवान पार्श्वनाथ अंगीकार करै। (टीका पं. सदासुखदास जी) मोक्ष गए। भगवान नेमीनाथ की आयु 1000 वर्ष थी। अब यदि भावार्थ : जो सचित्त त्याग नामक पंचम प्रतिमाधारी है भगवान मुनिसुव्रत नाथ के तीर्थ के मध्य में रामचंद्र जी की | वह कोई भी हरी वनस्पति. फल, शाक आदि को, बिना अग्नि ए। तीन लाख वर्ष तो भगवान मुनिसुव्रतनाथ के में पकाए भक्षण नहीं करता है। तीर्थ के और पाँच लाख वर्ष भगवान नमीनाथ के तीर्थ के सचित्त वस्तु के भक्षण का निषेध करते हुए श्रीमूलाचार जोड़ने पर रामायण और महाभारत का अंतर लगभग आठ लाख गाथा 827 में इस प्रकार कहा है: वर्ष आता है। पद्मपुराण में जो 64000 वर्ष लिखा गया है वह फलकंदमूलबीयं अणग्गिपक्कं तु आमयं किंचि। तो किसी भी प्रकार घटित नहीं होता। तीर्थंकरों के अंतरकाल णच्चा अणेसणीयं ण विय पडिच्छंति ते धीरा॥८२७॥ के संबंध में सभी आचार्य एकमत हैं। अर्थ : अग्नि से नहीं पके हुए फल, कंद, मूल और बीज ___ अतः आगमानुसार तो रामायण और महाभारत में उपरोक्त तथा और भी कच्चे पदार्थ जो खाने योग्य नहीं हैं ऐसा जानकर अन्तर ही सही बैठता, विद्वतगण इस पर विचार करें। वे धीर मुनि उनको स्वीकार नहीं करते हैं। जिज्ञासा : आजकल मुनिराजों को आहार में दिए जाने उपरोक्त प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि बिना अग्नि में पके वाले फल केवल गर्म पानी से धोकर अचित्त मान लिए जाते हैं। हुए फल या शाक सचित्त हैं, अतः पांचवीं प्रतिमा और उससे अथवा सेव, केला आदि के पाँच-सात टुकड़े करके अचित्त आगे की प्रतिमाधारक श्रावकों को तथा मुनियों को भक्ष्य न होने मानकर दिए जाते हैं, क्या यह उचित है? से आहार में देने योग्य नहीं हैं। अतः श्रेष्ठतम तो यही है कि समाधान : उपरोक्त प्रश्न के उत्तर में पूज्य आचार्य सेव, केला, ककड़ी, अंगूर आदि की सब्जी पकाकर उनको दी ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा लिखित सचित्त विचार नामक पुस्तक जाए। अथवा उबलते हुए पानी में इन फलों को 15 मिनिट तक अच्छी तरह पढ़ने योग्य है। वनस्पति के दो भेद हैं, प्रत्येक और रखकर, ताकि वे अंदर तक गर्मी के कारण अचित्त हो जाएं, साधारण । प्रत्येक वनस्पति के भी दो भेद हैं, सप्रतिष्ठित प्रत्येक आहार में देना चाहिए। फलों को केवल गर्म पानी से धोकर या और अप्रतिष्ठित प्रत्येक। इन तीनों प्रकार की वनस्पति में सप्रतिष्ठित उनके कुछ टुकड़े करके आहार में पात्र को देना शास्त्र विरुद्ध प्रत्येक एवं साधारण वनस्पति में अनंत जीव राशि पाई जाती है, अतः अभक्ष्य हैं। केवल अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति ही भक्ष्य ___इस संबंध में कुछ महानुभाव सचित्त वस्तु को प्रासुक है, जिसमें पके हुए फल आदि आते हैं। एक पके हुए फल सेव, करने के लिए स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा की संस्कृत टीका में कही केला, खीरा आदि में असंख्यात प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव गई निम्न गाथा बताते हैं : पाये जाते हैं। मुनिराज स्थावर जीवों की भी हिंसा के त्यागी होते हैं। अत: जिस तरह उनको पानी छानकर फिर उवालकर, शुद्धि सुक्कं पक्कं तत्तं अंविल लवणेण मिस्सियं दव्वं। जं जंतेण य छिण्णं तं सव्वं फासयं भणियं॥ आदि के लिए अचित्त (जीव रहित) करके दिया जाता है। उसी प्रकार वे केला, सेव, खीरा आदि सचित्त फलाहार भी नहीं लेते अर्थ : जो द्रव्य सूखा हो, पका हो, तप्त हो, आम्लरस हैं। अतः श्रावक आहार देते समय मनिराज को अचित्त फल ही | तथा लवणमिश्रित हो, कोल्ह, चरखी, चक्की, छुरी, चाक आदि आहार में देता है। सचित्त फल को अचित्त बनाने के संबंध में | यंत्रों से भिन्न-भिन्न किया हुआ तथा संशोधित हो, सो सब रत्नकरण्डश्रावकाचार में इस प्रकार कहा है: प्रासुक है। मूलफलाशाकशाखाकरीरकन्दप्रसूनबीजानि। भावार्थ : उपरोक्त गाथा का अर्थ इसप्रकार समझना नामानि योऽत्ति सोऽयं सचित्तविरतो दयामूर्ति ॥१४१॥ अर्थ : जो श्रावक मूल-फल-पत्र-डाहली-करीर कहिये - 1. जो सब्जी सूख चुकी है वह तो काष्ठ रुप हो जाने से अचित्त 24 जून जिनभाषित 2004 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524286
Book TitleJinabhashita 2004 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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