SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपने इकलौते पुत्र पर यह रहस्य उजागर करने बाध्य कर दिया। पुत्र को उन्होंने अनेक प्रकार लोभ पर संयम रखने की सीख दी। अतिक्रमण करने पर अनिष्ट की आशंकाओं का भय भी जागृत किया, परन्तु सभी मनुष्य, समान दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी नहीं होते। पिता की मृत्यु पश्चात् पुजारी पुत्र ने अपने लोभ पर कुछ दिन संयम रखा पश्चात् अपनी बलवती शरीर भोग सामग्रियों की कामनाओं के आगे नतमस्तक हो गया। पिता की दी हुई समस्त शिक्षाओं को मन ही मन कुतर्क की कुल्हाड़ी से आहत करता हुआ अधिक स्वर्ण बनाकर अपनी असीमित कामनाओं की पूर्ति करने लगा। कपास में दबी अग्नि की तरह व्यसनों का तथा सम्पत्ति का राज छुपा न रहा। जिले के निजाम शासक तक असीमित धन खर्च का राज पहुंच गया। छानबीन पश्चात् धीरे-धीरे मणी का राज निजाम नवाब तक पहुंच गया। ऐसी अद्भुत वस्तु को पाने की लालसा से उसने अपने अधिकारियों को आदेश दिया कि मूर्ति से मणी निकाल कर शासकीय कोष में अविलम्ब जमा की जाये । अधिकारियों एवं फौजदारों (पुलिस) का बड़ा अमला अचानक एक दिन पूर्णा नदी के तट पर स्थित श्री नेमिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पहुंचा। पुजारी को धमकाया गया तो उसने समस्त रहस्य उद्घाटित कर दिया। अधिकारी ने मूर्ति के अंगूठे से मणी निकालने का आदेश दिया। निजाम फौजदारों द्वारा मणी निकालने का दुश्प्रयास करने पर एक विस्मयकारी धमाके के साथ मणी स्वयं निकलकर पूर्णानदी के अथाह जल में समा गई। धमाके पश्चात् तथा बेहोश होने के पूर्व अनेक अधिकारियों ने मणी को उछलते हुये विस्फारित नेत्रों से स्वयं देखा मणी चमत्कारिक रूप से नदी में विलीन हो चुकी थी। । शासन का आदेश नदी से मणी प्राप्त करने का हुआ। लोहे की मोटी सांकले हाथियों के पैरों में बांधकर नदी में मंदिर के आसपास के किनारों पर अनेक दिन तक घुमाया गया। एक दिन एक हाथी की सांकल स्वर्णमय होकर वापिस आई। परन्तु मणी फिर भी प्राप्त नहीं हो सकी। हार थक कर सारा अमला वापिस हो गया। मणी फिर कभी नहीं मिली उसकी चर्चा मात्र रह गयी। मूर्ति के दायें पद के अंगूठे में आज भी मणी के बराबर का छिद्र अवशेष रूप में दिखाई देता है। मूर्ति आज भी पारस से अधिक अतिशयवान है अतिशय की अनेक घटनाएं और किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। आज भी मूर्ति नवागढ़ क्षेत्र के कांच मंदिर में विराजित दर्शनार्थियों को सर्वोपरि उपकारक है। 1 (कथा- भारत के दि.जै. तीर्थ- ले. पं. बलभद्र जैन ) क्षेत्र का वर्तमान स्वरूप : नदी तट के मंदिर के ध्वस्त Jain Education International हो जाने के पश्चात् मूर्तियों को अन्य उपयुक्त स्थान में विराजित करने के अनेक प्रस्ताव आये। पिंपरी देशमुख वाले मूर्तियाँ अपने यहाँ ले जाना चाहते थे। यह भी दन्त कथा है कि जब मूलनायक को अन्यंत्र ले जाया जा रहा था, उस समय वर्तमान स्थान से आगे मूर्ति को ले जाना संभव नहीं हो सका इसलिये इसी स्थान पर मंदिर बनाकर स्थापित किया गया । एक प्रत्यक्षदर्शी तथा मूर्ति लाने में सहयोगी श्री गंगाधर पूर्णेकर का कहना है कि निजाम सरकार ने क्षेत्र निर्माण करने, वर्तमान स्थान में 10 एकड़ जमीन, प्रयास करने पर आवंटित कर दी, जिसका विधिवत रजिस्ट्रेशन है तथा उखलद और आसपास के गाँव वालों का मूर्तियों को अन्यंत्र ले जाने के सबल विरोध के कारण यहीं मंदिर बनाकर मूर्तियाँ स्थापित करने का सभी आसपास की समाज का सामूहिक निर्णय हुआ । I वर्तमान क्षेत्र नवागढ़ (उखलद) के नाम से जाना जाता है जिसका पूरा नाम श्री नेमीनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नवागढ़ उखलद है। सन् 1931 में वर्तमान क्षेत्र में मूर्तियों को विधिवत स्थापित किया जा सका। वर्तमान भव्य मंदिर के चारों ओर 570 x 510 फिट का परकोटा है। इसी परकोटे से जुड़ी दस एकड़ जमीन है, जिसे शासन से प्राप्त किया गया था। 10 एकड़ जमीन दानशीला रतनबाई सोनटक्के ने पूज्य आचार्य आनन्दी महाराज की प्रेरणा से दान दी है। उन्हीं के नाम से यहाँ हायर सेकेण्ड्री स्कूल चलता है तथा श्री नेमिनाथ दिगम्बर ब्रह्मचर्य आश्रम गुरुकुल क्षेत्र ट्रस्ट के निर्देशन में चलता है। इस गुरुकुल में 200 विद्यार्थियों को रहने, भोजन तथा निःशुल्क शिक्षा का प्रबन्ध पूज्य आचार्य आर्यनन्दी महाराज की प्रेरणा से किया गया है। क्षेत्र पर तीर्थयात्रियों को सभी सुविधायें विकसित क्षेत्रों जैसी हैं। क्षेत्र के मूलनायक तथा अन्य वैभव : मूलनायक भगवान् नेमिनाथ की श्यामवर्ण अर्धपद्मासन प्रतिमा 5 फिट अवगाहना (आसन सहित) वाली है। एक शिलाफलक में उत्कीर्ण अतिमनोज्ञ अतिशयवान है। ऊपर 3 छत्र तथा पीछे भामण्डल शोभित है। ऊपर कोनों में देवों की प्रतिमायें उकेरी गई हैं. नीचे दोनों ओर चमरेन्द्र हैं। नेमिनाथ प्रभु के वक्ष पर श्रीवत्स तथा चरणों में शंख का चिन्ह अंकित है। इसी वेदी पर अन्य तीन पाषण और 10 धातु की तीर्थकर प्रतिमाएँ विराजमान हैं। पूरा गर्भ गृह रंगीन शीशों से जड़ित अत्यंत शोभनीय है। मूलनायक के गर्भगृह के बाहर मंदिर में मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर सभामण्डप में पांच कटनी वाली दोनों ओर दो वेदियाँ हैं । बायीं ओर की वेदी पर 19 पाषाण की तथा धातु की मूर्तियाँ विराजमान हैं। दांयी ओर की वेदी पर 23 पाषाण मूर्तियाँ -अक्टूबर 2003 जिनभाषित For Private & Personal Use Only 9 www.jainelibrary.org
SR No.524278
Book TitleJinabhashita 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy