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समाचार
क्षुल्लिका श्री वीरमती माता जी की समाधि नवापारा - राजिम । जैन समाज में वात्सल्यमयी एवं मृदुव्यवहार के लिए विख्यात श्रीमती चमेलीदेवी धर्मपत्नी. पं. सुरेशचंद जैन (पुत्रवधू स्व. पं. बालचंद जी जैन) ने अपनी अल्पायु का अनुभव करते हुए दिनांक १९/४/०३ को सल्लेखना का संकल्प लेते हुए दर्शन एवं व्रत प्रतिमा को ग्रहण किया पश्चात् क्रमश: प्रतिमाओं की साधना में वृद्धि करते हुए ब्रह्मचारिणी चमेलीदेवी ७ प्रतिमा के बाद गृह त्याग करके वर्णीभवन में साधनारत हो गईं।
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दिनांक २४/४/०३ को विराजमान पूज्य क्षुल्लक विनयसागर जी महाराज से ब्रह्मचारिणी क्षपक चमेलीदेवी ने क्षुल्लिका के व्रत ग्रहण करने के लिए निवेदन करने पर महाराजश्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि मुझे न तो दीक्षा देने का कोई अधिकार है और न ही मैं कोई दीक्षा दे रहा हूँ, मैं तो सिर्फ श्री जिनेन्द्रदेव को साक्षी मानकर क्षपक चमेलीदेवी को ११ प्रतिमाओं के व्रत दिलवा रहा हूँ । पश्चात् उपस्थित जनसमूह से एवं क्षपक के पारिवारिक जनों से स्वीकृति लेकर क्षुल्लिका दीक्षा के संस्कार विधिवत् कराकर क्षुल्लिका वीरमति माताजी के नाम से अलंकृत की गई वीरमति माताजी अपनी साधना में रत रहते हुए क्रमशः अन्नत्याग, रसत्याग के बाद जल पर २ दिन रहीं। अंत में स्वास्थ्य की क्षीणता एवं इंद्रियशक्ति की हीनता के कारण अंतिम समय अर्द्धचेतनावस्था जैसी स्थिति में रहीं एवं दि. ६/५/०३ को अंतिम समय आँखों को खोलकर बाजू में रखे हुए भगवान् पार्श्वनाथ के चित्र एवं आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चित्र को निहारते हुए चिरनिद्रा में लीन हो गई।
मृत्यु महोत्सव की समाधि यात्रा में अपार जनसमूह द्वारा एकत्रित होकर माताजी को पद्मासन मुद्रा में पालकी में बैठाकर समाधि स्थल में विधि-विधान अनुसार चंदन लकड़ी-कपूर-घीनारियलों द्वारा अंतिम संस्कार की क्रिया ब्रह्मचारी द्वय संजय भैया एवं अखिलेश भैया द्वारा सम्पन्न कराई गई।
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पं. ऋषभकुमार शास्त्री नवापारा राजिम
राजस्थान के चौदहवें राज्यपाल
श्री निर्मलचन्द जी जैन बने
केन्द्र सरकार ने विगत दिनों राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर में नए राज्यपालों की नियुक्ति किए जाने हेतु राष्ट्रपति को नाम प्रेषित किये थे, उनमें से एक नाम जैन समाज के ख्यातिलब्ध एडवोकेट श्री निर्मलचन्द्र जी जैन जबलपुर का भी था ।
२ मई ०३ को राष्ट्रपति भवन से जारी अधिकारिक घोषणा में नव नियुक्त छह राज्यपालों में श्री निर्मल चन्द जैन को राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया । २४ सितम्बर १९२८ को जन्मे श्री जैन एम. ए. (अर्थशास्त्र) एवं एल. एल. बी. करके अधिवक्ता के रूप में कार्यरत हुये। एक पुत्र एवं तीन पुत्रियों के साथ धर्मपत्नी श्रीमती रोहिणी जैन सदा श्री जैन के सेवाभावी कार्यों में सह भागिता दर्ज कराती हैं ।
महाकौशल अंचल ही नहीं, बल्कि समस्त मध्यप्रदेश के जैन समाज के लिए यह गौरव की बात है कि जैन समाज का एक व्यक्ति इतने महत्त्वपूर्ण पद पर आसीन हुआ है। हालाँकि गुजरात के निवर्तमान राज्यपाल श्री सुन्दरसिंह भंडारी तथा उ. प्र. के सहारनपुर के सुप्रसिद्ध राजनेता स्व. श्री अजित प्रसाद जैन तथा स्व. श्री जय सुखलाल हाथी जैसे कुशल राजनेता भी राज्यपाल के पद पर आसीन होकर जैन समाज का गौरव बढ़ा चुके हैं । किन्तु म.प्र. के लिए यह अवसर पहली बार मिला है, जब जैन समाज के एक वरिष्ठ जन को राज्यपाल का सम्मानित पद मिला ।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री जैन ने वर्ष १९६१ में जबलपुर के ऊषा भार्गव काण्ड में विशेष अभियोजक के रूप में नियुक्त होकर उस समय म.प्र. भर में धूम मचाई थी। सिवनी (म.प्र.) संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का लोकसभा में प्रतिनिधित्व
करते हुये श्री जैन ने क्षेत्र के सर्वांगीण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था । म.प्र. में भाजपा की सुन्दरलाल पटवा की सरकार के समय म.प्र. उच्च न्यायालय में एडवोकेट जनरल रह चुके जैन की गिनती कुशल कानूनविद् के रूप में की जाती है। म.प्र. के बहुचर्चित चुरहट लाटरी काण्ड को सुर्खियों में लाकर श्री जैन के कारण प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ राजनेता अर्जुन सिंह को खासी राजनीतिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा था । म.प्र. भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष कैलाश जोशी ने तब उस संबंध में याचिका दायर की थी । निर्मलचंद जैन तब विशेषरूप से सुर्खियों में आए जब
जून 2003 जिनभाषित 27
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