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________________ और वहाँ हो रहे जीर्णोद्धार के कार्यों पर अपनी स्पष्ट राय से | एकान्तवादी संगठनों, व्यक्तियों के द्वारा अपनी संस्थाओं से उक्त समाज को अवगत करायें। विषैली तथा समाज को भ्रामक जानकारी देने वाली कृतियों के, आभार, श्री ऋषभ मोहिवाल- संगोष्ठी संयोजक (कोटा) वितरण करने पर रोष प्रकट करती है। यद्यपि उनका यह कार्य पूर्व ने व्यक्त किया। बिजौलिया तीर्थक्षेत्र कमेटी के सभी पदाधिकारियों घोषित मुनिविरोध का ही एक और कदम है। किन्तु वे यह जान एवं सदस्यों ने विद्वानों का हार्दिक सम्मान किया। लें कि जागरूक मुनि भक्त समाज उनके इस वहकावे में आने -डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन 'भारती' वाला नहीं है। हमारा समाज परम दिगम्बर मुनियों के प्रति आस्थावान मन्त्री, अ.भा.दि.जैन विद्वत्परिषद् था और सदैव रहेगा। हमारा समाज से आग्रह है कि वह ऐसी एल. 65, न्यू इन्दिरा नगर, ए, बुरहानपुर, म.प्र. कृतियों, इनके लेखकों तथा वितरकों से सावधान रहें तथा सम्बन्धित अ.भा. दि. जैन विद्वत्परिषद् द्वारा पारित प्रस्ताव | तीर्थ क्षेत्रों पर स्वयं जाकर यथार्थ स्थिति से साक्षात्कार करें। अ.भा. दि. जैन विद्वतपरिषद् साधारण सभा का यह प्रस्तावक - पं. लालचन्द जैन 'राकेश" अधिवेशन यह प्रस्ताव करता है कि परमपूज्य संत शिरोमणि आचार्य गंज बसौदा श्री विद्यासागर जी महाराज एवं उनके सुयोग्य शिष्य मुनि पुंगव समर्थक - पं. महेन्द्र कुमार जैन, प्राचार्य मुरैना श्री सुधासागर जी महाराज ने श्री दि.जैन अतिशय क्षेत्र देवगढ़ श्री दि.जैन सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर, श्री दि. जैन मन्दिर संघी जी सांगानेर एक महनीय कृति का लोकार्पण श्री दि. जैन मन्दिर रैवासा, श्री दिग. जैन मन्दिर, बैनाड़ श्री दि. खांदूकालोनी (बांसवाड़ा) 27, अक्टूबर 2002, यहाँ जैन अतिशय क्षेत्र चांदखेड़ी एवं श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र पार्श्वनाथ | 16.10.02 से आयोजित जैन विद्या संस्कार शिक्षण शिविर के बिजौलिया आदि में सम्बन्धित तीर्थक्षेत्र समितियों के द्वारा बनायी | समापन के अवसर पर सहस्राधिक छात्रों और श्रावकों के मध्य गयी योजनानुसार अपने क्षेत्र के संरक्षण, संवर्धन हेतु चाहे गये गुरुवर आचार्य विद्यासागर जी महाराज के सुशिष्य ऐलक आशीर्वाद के फलस्वरूप इन स्थानों पर जो भी तीर्थ जीर्णोद्धार सिद्धान्तसागर जी महाराज के पावन सानिध्य में पं. सनतकुमार, विषयक कार्य हुए हैं उनकी सराहना एवं समर्थन करता है। पूज्य विनोदकुमार रजवांस, सागर द्वारा अनूदित श्री सिद्धचक्र विधान मुनिसंघों के आगमन से इन तीर्थों पर विकास की गंगा बहने लगी (अर्थ सहित) का लोकार्पण श्री विनोद कुमार दोशी, वागीदौरा के है तथा इन तीर्थों पर लाखों श्रद्धालुओं का आगमन होने लगा है द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रतिष्ठाचार्य पं. जयकुमार तथा पुण्यार्जन की विशेष स्थिति बन गयी है पूज्य मुनि श्री के "निशांत" टीकमगढ़ ने भातद्वय का परिचय दिया। शुभाशीर्वाद एवं सम्यक् प्रेरणा का यह सुफल मानते हुए सम्पूर्ण पूज्य ऐलकश्री ने दोनों भाइयों को आशीर्वाद दिया और जनता के स्वर में स्वर मिलाते हुए इस अधिवेशन में उपस्थित कहा कि सिद्धचक्र विधान के रहस्यमय छन्दों का सरलीकरण सभी विद्वान् पू. मुनिश्री के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। करके इन विद्वानों ने समाज एवं साहित्य की सेवा कर गरिमामय बीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक तथा इक्कीसवीं शती | कार्य किया है। के पूर्वार्द्ध को इस दृष्टि से सदियों तक याद किया जायेगा कि प.पू. चातुर्मास समिति खांदू कालोनी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर बांसबाड़ा (राज.) जी महाराज की प्रेरणा से जहाँ अनेक तीर्थोद्धार हुए वहीं पुरातत्त्विक समवशरण महामण्डल विधान समापन धरोहरों को सुरक्षा भी मिली है। सिरोंज। श्रमण सूर्य, 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी की हमें यह खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि कुछ व्यक्ति आज्ञानुवर्ती शिष्या आर्यिका रत्न 105 गुणमति माताजी के ससंघ उक्त तीर्थ क्षेत्रों पर हुए निर्माण कार्यों में स्वयं को कोई भूमिका न सान्निध्य एवं प्रतिष्ठाचार्य ब्र.त्रिलोक जी जबलपुर के विधानाचार्यत्व मिलने और मुनिश्री के प्रति निरन्तर बढ़ रही श्रद्धा से विचलित हो में अतिशय क्षेत्र नसियाँजी में 1008 समवशरण विधान सानन्द कर द्वेषपूर्ण, भ्रामक, अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं। ऐसे स्वार्थी सम्पन्न हुआ। तत्त्वों से सावधान रहने की आवश्यकता है। समापन समारोह में विशाल जन समुदाय को सम्बोधित कुछ दिन पूर्व तथाकथित जैन संस्कृति रक्षा मंच द्वारा करते हुए पूज्य माता जी ने कहा कि विधान की सानन्द सफलता प्रकाशित "जागिये, उठिये और आगे बढिये" तथा 'जैन पुरातत्त्व से हर्षित इन्द्र इन्द्राणी आचार्य श्री को अर्घ चढ़ाने नेमावर जा रहे के विध्वंस की कहानी' जैसी पुस्तकों तथा इन्हीं से सम्बन्धित हैं। ये सोने पे सुहागे जैसी बात है क्योंकि गुरु आशीष के बिना , लोगों द्वारा कुछेक पत्र-पत्रिकाओं द्वारा मुनि श्री के विरुद्ध की जा जीवन में सफलता के द्वार नहीं खुलते। रही अशोभनीय टिप्पणियों तथा जीर्णोद्धार विषयक कपोल कल्पित मंत्री कहानियों के प्रकाशन की घोर निन्दा एवं भर्त्सना करता है तथा श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र ऐसी कृतियों के बहिष्कार का आह्वान करता है। यह अधिवेशन | नसियाँ ट्रस्ट, सिरोंज 32 दिसम्बर 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524268
Book TitleJinabhashita 2002 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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